पी.सी. एलेक्ज़ेंडर (इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव) ने अपनी किताब 'माई डेज़ विद इंदिरा गांधी' में लिखा है कि इंदिरा गांधी की हत्या के कुछ घंटों बाद ही उन्होंने ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट (AII) के गलियारे में सोनिया और राजीव को लड़ते हुए देखा था।
राजीव सोनिया को बता रहे थे कि पार्टी मुझे प्रधानमंत्री बनाना चाहती है। सोनिया इसके खिलाफ थीं, उन्होंने तुरंत कहा- हरगिज़ नहीं। 'वो तुम्हें भी मार डालेंगे'। राजीव ने कहा मेरे पास कोई विकल्प नहीं, 'मैं वैसे भी मारा जाऊंगा।'
राजीव गांधी द्वारा कही गई ये बात सात वर्ष बाद सत्य साबित हुई जब 21 मई, 1991 की रात दस बज कर 21 मिनट पर तमिलनाडु के श्रीपेरंबदुर में श्री राजीव गांधी की हत्या कर दी गई।
कोई भी व्यक्ति जो किसी भी समृद्ध देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति की हत्या करने का प्लान बनाता है वह अपने दिमाग में खुद को मृत घोषित कर ही लेता होगा। क्योंकि प्रधानमंत्री के सुरक्षा घेरे को वो हरगिज़ पार नहीं कर पायेगा। लेकिन राजीव गांधी के मामले में इससे कुछ हटकर था। क्योंकि जो उनकी हत्यारी थी वो सुसाइड बॉम्बर ही थी, जब तक वो खुद नहीं मारती प्रधानमंत्री की हत्या भी ना होती।
एक नाटी, काली और गठीली लड़की जिसकी उम्र तीस वर्ष की थी। चंदन के फूलों का एक हार ले कर भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की ओर बढ़ी। राजीव ने स्वागतभाव से उसी तरफ देखा। सबकुछ बहुत तेज़ी से हो रहा था। जैसे ही वो लड़की उनके पैर छूने के लिए झुकी, कानों को बहरा कर देने वाला धमाका हुआ।
सबकुछ पालक झपकते ही हो गया। मद्रास कैफ़े फिल्म देखेंगे तो पिक्चर बहुत हद तक क्लियर हो जाएगी। भीड़ बहुत थी। पास ही खड़ी एक पत्रकार(उस वक्त की गल्फ न्यूज़ और अब के डेक्कन हेराल्ड, बेंगलुरु की स्थानीय संपादक) नीना गुप्ता ने बताया, 'उस दिन में जल्दबाजी में सफ़ेद साड़ी पहन कर चली गई थी। कुछ ही दूरी पर राजीव के सहयोगी सुमन द्विवेदी से बातचीत कर रही थी। बात करते दो मिनट भी नहीं हुए होंगे कि सामने बम फटा। पालक झपकते ही मेरी सफ़ेद साड़ी लाल-काले रंग में परिवर्तित हो गई, उस पर मांस के टुकड़े और खून के छींटे पड़े हुए थे। उस दिन मेरे साथ चमत्कार ही हुआ था जो मैं बच गई क्योंकि मेरे आगे खड़े सभी लोग मारे गए थे। वहां लोगों के कपड़ों में आग लगी हुई थी, लोग चीख रहे रहे थे, भगदड़ मच गई थी और लाशें बिछी हुई थीं। हमें पता ही नहीं चल पा रहा था कि राजीव गांधी कहां हैं और उनके साथ क्या हुआ है। वे जीवित हैं भी या नहीं।' आगे की दास्तान बेहद दर्दनाक है इसलिए यहीं समाप्त करते हैं और शुरुआत पर आते हैं। (Credit- BBC Hindi)
संक्षिप्त जीवनी-
राजीव गांधी का जन्म 20 अगस्त, 1944 को बॉम्बे में हुआ था। राजीव पं. जवाहरलाल नेहरू के दौहित्र (नाती) एवं इन्दिरा-फ़िरोज़ गांधी के पुत्र थे। राजीव मात्र 40 वर्ष की उम्र में देश के प्रधानमंत्री बन गए थे। वे देश के अब तक के सबसे यंग प्रधानमंत्री रहे। इसके साथ वे दुनिया के सबसे यंग राजनेताओं में से एक हैं जिन्होंने देश का नेतृत्व किया। जब हमारे देश को स्वतंत्रता मिली और पंडित जवाहर लाल नेहरू देश के प्रथम प्रधानमंत्री बने तब राजीव मात्र 3 वर्ष के थे। उसी दौरान इंदिरा-फ़िरोज़ लखनऊ से नई दिल्ली आकर रहने लगे थे। फ़िरोज़ गांधी सांसद बन चुके थे। राजीव गांधी का बचपन अपने दादा के साथ तीन मूर्ति हाउस में बीता जहां उनकी मां इंदिरा अपने पति से दूर रहकर प्रधानमंत्री की परिचारिका के रूप में कार्य करने लगी थीं।
शुरूआती शिक्षा प्राप्त करने के लिए राजीव देहरादून के वेल्हम स्कूल गए लेकिन जल्द ही उन्हें हिमालय की तलहटी में स्थित आवासीय दून स्कूल में भेज दिया गया। दून स्कूल में उनके कई मित्र बने जिनके साथ उनकी आजीवन दोस्ती बनी रही, उन मित्रों में से एक अमिताभ बच्चन भी हैं। बाद में राजीव के छोटे भाई संजय गांधी की भी शुरूआती शिक्षा-दीक्षा यहीं हुई। दोनों भाइयों ने साथ रहकर पढ़ाई की। दून स्कूल से निकलने के बाद श्री राजीव जी कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज गए लेकिन जल्द ही उन्होंने वहां से हटकर लंदन के इम्पीरियल कॉलेज में दाखिला ले लिया। इम्पीरियल कॉलेज से उन्होंने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की। कहा जाता है कि इन्हीं दिनों उनकी मुलाकात इटली की नागरिक एंटोनियो माइनो से हुई थी जो उस समय वहां अंग्रेजी की पढ़ाई कर रही थीं। साल 1968 में उन्होंने एंटोनियो से दिल्ली में शादी कर ली और यहीं रहने लगे। भारत (ससुराल) में उनको सोनिया गांधी नाम दे दिया गया। राजीव-सोनिया के दो बच्चे हैं, पुत्र राहुल गांधी का जन्म 1970 और पुत्री प्रियंका गांधी का जन्म 1972 में हुआ।
राजनीति में कोई रूचि नहीं थी...
यह बात तो एकदम स्पष्ट है कि शुरूआती जीवन में राजीव की राजनीति में कोई रूचि नहीं थी। उनके सहपाठियों द्वारा साझा की गई बातों के अनुसार, राजीव के पास राजनीति, इतिहास या दर्शन से संबंधित पुस्तकें होने के बजाय विज्ञान एवं इंजीनियरिंग की कई पुस्तकें हुआ करती थीं। उन्हें संगीत बेहद पसंद था, वे आधुनिक संगीत के साथ-साथ पश्चिमी और हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के दीवाने थे। रेडियो हमेशा उनके साथ ही होता था। इसके अलावा उन्हें फोटोग्राफी का भी शौक था।
हवा में उड़ान भरना उनका जुनून था। जब वे इंग्लैंड से भारत वापस लौटे तब उन्होंने दिल्ली फ्लाइंग क्लब की प्रवेश परीक्षा पास की और वाणिज्यिक पायलट का लाइसेंस प्राप्त किया। फिर घरेलू राष्ट्रीय जहाज कंपनी इंडियन एयरलाइंस के पायलट बन गए और अपने जूनून को अपना पेशा बना लिया। घर व आस-पास के माहौल में राजनीतिक हलचलों के बावजूद अपना जीवन सामान्य रूप से जीते रहे।
प्रधानमंत्री बने-
देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री व मां इंदिरा की हत्या के बाद जब पूरा देश शोक में डूबा हुआ था तब पार्टी ने राजीव गांधी को अपना नेता चुन लिया। दरअसल, राजीव की राजनीति में रूचि नहीं थी। वे इंडियन एयरलाइन कंपनी में पायलट के तौर पर काम कर रहे थे और उसी में खुश भी थे। लेकिन राजीव को अपने छोटे भाई संजय की एक विमान दुर्घटना में मृत्यु के बाद अपनी इच्छा के विरुद्ध राजनीति में कदम रखना पड़ा। 23 जून, 1980 को संजय की मृत्यु हो गई जो राजनीति में सक्रिय थे। उनकी मृत्यु पश्चात 11 मई, 1981 को राजीव को कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण करनी पड़ी। 15 जून, 1981 को उत्तर प्रदेश के अमेठी संसदीय क्षेत्र से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए जहां से मौजूदा समय में भाजपा की स्मृति ईरानी सांसद हैं। फिर मां इंदिरा की हत्या के बाद राजीव को देश का प्रधानमंत्री बना दिया गया। मां की मृत्यु के शोक से उबरने के बाद उन्होंने देश में लोकसभा चुनाव कराने के आदेश दे दिए। चुनाव प्रचार प्रारंभ हुआ, महीने भर के लंबे चुनाव अभियान के दौरान राजीव ने पृथ्वी की परिधि के डेढ़ गुना के बराबर दूरी की यात्रा की। प्रचार करते हुए उन्होंने देश के लगभग सभी भागों में जाकर 250 से अधिक सभाएं की एवं लाखों लोगों से मिले। नतीजतन 1984 के चुनाव में कांग्रेस को पिछले सात चुनावों की तुलना में जनता का अद्भुत समर्थन मिला, पार्टी ने 508 में से रिकॉर्ड 401 सीटों पर जीत हासिल की। राजीव गांधी ने देश के सबसे युवा एवं छठे प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली।
प्रधानमंत्री बनने के बाद...
प्रधानमंत्री बनने के बाद कई लोगों द्वारा उन पर तंज भी कसे गए कि राजीव राजनीति में बच्चे हैं लेकिन बाद में उनके कामों ने सभी आलोचकों के मुंह पर ताला जड़ दिया। उन्होंने कई क्षेत्रों में नई पहल और शुरुआत की जिनमें कंप्यूटर क्रांति और संचार क्रांति,18 साल के युवाओं को मताधिकार, शिक्षा का प्रसार, पंचायती राज आदि शामिल हैं। इसके अलावा प्रधानमंत्री रहते राजीव ने कई साहसिक कदम भी उठाए जिनमें श्रीलंका में शांति सेना का भेजा जाना, पंजाब समझौता, असम समझौता, मिजोरम समझौता आदि शामिल हैं।
श्री राजीव गांधी स्वभाव से बेहद गंभीर लेकिन आधुनिक सोच के धनी थे। उनकी निर्णय लेने की क्षमता अद्भुत थी। वे देश को दुनिया की उच्चतम तकनीकों से परिपूर्ण करना चाहते थे। उनका हमेशा, बार-बार यही कहना रहता था कि 'भारत की एकता को बनाये रखने के उद्देश्य के अलावा उनके अन्य प्रमुख उद्देश्यों में से एक– इक्कीसवीं सदी के भारत का निर्माण है।'
कहीं न कहीं 'ऑपरेशन चेकमेट' को माना जाता है उनकी हत्या का मुख्य कारण-
कुछ राजनीतिक फैसलों के चलते कट्टरपंथी राजीव से नाराज हो चुके थे। श्रीलंका में सलामी गारद के निरीक्षण के वक्त उनपर जानलेवा हमला किया गया था लेकिन वह बाल-बाल बच गए लेकिन 1991 में ऐसा नहीं हो सका। 21 मई, 1991 को चुनाव प्रचार के दौरान तमिलनाडु के श्रीपेरंबदुर में एक आत्मघाती हमले में वह मारे गए। इस आत्मघाती हमले में 17 अन्य लोगों की भी मौत हुई थी। 'लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (LTTE)' नामक आतंकवादी संगठन इस हत्या का सूत्रधार था।
दरअसल, सन् 1987 में भारत और श्रीलंका सरकार के बीच एक हस्ताक्षरित समझौता हुआ था। इस समझौते के तहत प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने भारतीय सेना को 'भारतीय शांति रक्षा सेना (IPKF)' का गठन करने के निर्देश दिए। IPKF का गठन हुआ और इन सैनिकों को श्रीलंका भेज दिया गया। 1987 से 1990 के मध्य हमारी सेना ने श्रीलंका में शांति स्थापित करने के लिए एक ऑपरेशन को अंजाम दिया, इसी ऑपरेशन को ही 'ऑपरेशन चेकमेट' कहा गया।
भारतीय शांति रक्षा सेना का उद्देश्य 'श्रीलंकाई सेना' और 'लिबरेशन टाइगर्स ऑफ़ तमिल ईलम (LTTE) के बीच जारी श्रीलंकाई गृहयुद्ध को समाप्त करना था। उद्देश्य केवल गृहयुद्ध समाप्त करना ही नहीं बल्कि 'LTTE' समेत विभिन्न उग्रवादी संगठनों का ख़ात्मा करना भी था। बस यही कारण था कि सभी उग्रवादी संगठन राजीव गाँधी के इस सेना भेजने वाले फैसले से बेहद नाराज हो चुके थे।
उस वक्त 'भारतीय शांति रक्षा सेना (IPKF)' में 80,000 सैनिकों को शामिल किया गया था। IPKF और LTTE के बीच कई बार खूनी भिड़ंत हुई। श्रीलंका में इन ऑपरेशंस में करीब 1,255 भारतीय सैनिक शहीद हो गए, हज़ारों घायल हुए। IPKF ने भी LTTE के 7000 आतंकियों को मार गिराया था। उस दौर के भयंकर संघर्ष का अंजाम राजीव गांधी की हत्या में तब्दील हुआ।
श्री राजीव गांधी पर आरोप भी बहुत लगे... आलोचनाएं भी बहुत हुईं
राजनीतिक भ्रष्टाचार के चलते जो राजीव कभी राजनीति में नहीं आना चाहते थे उन्हीं राजीव का राजनीतिक जीवन भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरा रहा।
1. राजीव के जीवन में सबसे बड़ा आरोप 64 करोड़ के बोफोर्स घोटाले में संलिप्त होने का लगा। इसी के चलते उन्हें प्रधानमंत्री पद से भी हाथ धोना पड़ा था।
2. राजीव के ऊपर दूसरा बड़ा आरोप शाहबानो प्रकरण में लगा। उन पर आरोप था कि उन्होंने कांग्रेस के प्रचण्ड बहुमत का दुरुपयोग करते हुए संसद में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के उलट विधेयक पारित करवा लिया था।
3. 1984 में जो सिख विरोधी जो दंगे हुए थे, राजीव द्वारा उन दंगों के सन्दर्भ में दिए गए वक्तव्य की भी भारी आलोचना हुई थी। दरअसल, राजीव ने अपने वक्तव्य में कह दिया था कि 'जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती तो हिलती ही है।' यहां पर शायद उनका तात्पर्य इंदिरा की हत्या से था।
4. 1991 में राजीव पर स्विस बैंकों में ढाई बिलियन स्विस फ्रैंक (आज एक स्विस फ्रैंक की कीमत भारत के 80.82 रुपये के बराबर है।) यानि काले धन रखने का आरोप लगा था। बाद में Schweizer Illustrierte नामक पत्रिका द्वारा लगाया गया यह आरोप सत्य भी साबित हुआ।
5. 1992 में राष्ट्रीय दैनिक अख़बार टाइम्स ऑफ इंडिया (TOI) द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया था कि सोवियत संघ (Soviet Union) की ख़ुफ़िया एजेंसी के जी. बी. ने राजीव को रिश्वत रुपी धन मुहैया कराया था।
6. राजीव पर छठा बड़ा आरोप ये था कि उन्होंने भोपाल गैस काण्ड के आरोपी वारेन एंडरसन को रिश्वत लेकर देश से भगाने में आसानी प्रदान की थी।