जगन्नाथ रथ यात्रा: दुनियाभर में इसकी चर्चा होती है, क्या है इसकी कहानी? 

जगन्नाथ रथ यात्रा: दुनियाभर में इसकी चर्चा होती है, क्या है इसकी कहानी?
जगन्नाथ रथ यात्रा: दुनियाभर में इसकी चर्चा होती है, क्या है इसकी कहानी?
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जगन्नाथ रथ यात्रा: दुनियाभर में इसकी चर्चा होती है, क्या है इसकी कहानी? 

Ashish Urmaliya | The CEO Magazine

भारत दुनिया के अधिकतम उत्सव मनाने वाले देशों में से एक है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है, कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश होने के साथ ही एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र भी है। यहां विभिन्न धर्मों का अनुसरण करने वाले लोग रहते हैं, इसी के चलते यहां महीने में एक-दो बड़े उत्सव आ ही जाते हैं, जिन्हें पूरे देश के लोग मिलकर सेलिब्रेट करते हैं। आज हम इन्हीं महोत्सवों में से सबसे महत्वपूर्ण महोत्सव 'जगन्नाथ रथयात्रा' के बारे में बात करने जा रहे हैं, जो पूरे देश के लोग बड़े धूमधाम से मनाते हैं।

जगन्नाथ पूरी की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा का महोत्सव आषाढ़ महीने की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को शुरू होता है, जो 10 दिनों तक चलने के बाद शुक्ल एकादशी के दिन समाप्त होता है। इस वर्ष यह महोत्सव 4 जुलाई को शुरू होने जा रहा है। इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ को रथ पर विराजमान करके पूरे नगर में भ्रमण कराया जाता है। यात्रा में भगवान् जगन्नाथ के साथ उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा का रथ भी निकाला जाता है। इस विकराल रथयात्रा की शुरुआत जगन्नाथ मंदिर से होती है और गुण्डिचा मंदिर पर जाकर समाप्त होती है। इस विश्व प्रसिद्ध रथ यात्रा में पहुंचने के लिए दुनियाभर से श्रद्धालु भारी संख्या में यहां पहुंचते हैं।

तो आइये जानते हैं, इस विश्व प्रसिद्ध यात्रा से जुड़ी मान्यताओं और इतिहास के बारे में-   

जगन्नाथ यात्रा का इतिहास-

वैसे तो इस यात्रा के इतिहास को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं, लेकिन अगर पौराणिक मान्यता की बात की जाये, तो रथ यात्रा की परंपरा द्वापर युग से चली आ रही है यानी श्री कृष्ण के युग से। मान्यता है, कि एक बार श्री कृष्ण की बहन सुभद्रा ने भगवान श्री कृष्ण से द्वारका नगरी भ्रमण कराने का आग्रह किया जो श्री कृष्ण ने तुरंत स्वीकार कर लिया। अपनी बहन का आग्रह मानते हुए श्री कृष्ण यानी भगवान् जगन्नाथ ने रथ से अपनी बहन को नगर भ्रमण कराया था। इस यात्रा में भगवान कृष्ण, देवी सुभद्रा और बलराम के अलावा और भी कई दैविक हस्तियां शामिल हुई थीं। तभी से यह रथयात्रा निकलने की परंपरा शुरु हुई। यात्रा में रथों पर भगवान श्री कृष्ण, भाई बलराम और बहिन सुभद्रा की प्रतिमायें रखी जाती हैं और प्रतिवर्ष तीनों रथों को नगर भ्रमण के लिए निकाला जाता है।

इस रथ यात्रा की विशेषताएं-

जगन्नाथ पूरी में यह रथ यात्रा महोत्सव पूरे 10 दिनों तक चलता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं। यात्रा के दिनों यहां की सड़कें श्रद्धालुओं से खचाखच भरी होती हैं। भक्तजन भगवान की पूजा अर्चना करते हैं, रास्तेभर रथों पर फूलों की वर्षा की जाती है। खास बात यह है कि, ये तीनो रथ लोग अपने हाथों से खींचते हैं। गुण्डिच्चा मंदिर पहुंचने के बाद, भगवान् श्री जगन्नाथ, भाई बलराम और बहन सुभद्रा 7 दिनों तक यहीं निवास करते हैं।

7 दिनों के विश्राम के बाद भगवान की वापसी यात्रा का आरंभ होता है, इसे उड़िया भाषा में 'बाहुड़ा' यात्रा कहा जाता है। आषाढ़ शुक्ल दशमी के दिन गुण्डिचा मौसी मां मंदिर से भगवान के रथ को खींच कर पुनः जगन्नाथ मंदिर तक लाया जाता है। यात्रा पूर्ण होने के बाद इन तीनो की मूर्तियों को वापस मंदिर के गर्भ-गृह में स्थापित कर दिया जाता है।

आइये इन तीनों रथों के बारे में भी जान लेते हैं।

-भगवान् जगन्नाथ के रथ को 'गरुड़ध्वज व कपिलध्वज' के नाम से भी जाना जाता है। यह रथ तीनो रथों में सबसे बड़ा होता है, जिसकी ऊंचाई 13.5 मीटर की होती है। इस रथ को लाल और पीले रंग के कपड़े से सजाया जाता है, मान्यता है कि, इस रथ की हिफाजत भगवान विष्णु के वाहक गरुड़ जी करते हैं। इस रथ के ऊपर जो ध्वज लहरा रहा होता है उसे 'त्रैलोक्यमोहिनी' (माता लक्ष्मी का दूसरा नाम) कहते हैं।

-भगवान बलराम के रथ को 'तलध्वज' के नाम से जाना जाता है। यह रथ भगवान जगन्नाथ के रथ से थोड़ा छोटा और सुभद्रा के रथ से बड़ा होता है, जिसकी ऊंचाई 13.2 मीटर की होती है। 14 पहिये वाले इस रथ के रक्षक वासुदेव और सारथी श्री मताली जी होते हैं।

-सुभद्रा जी का रथ 'पद्मध्वज' के नाम से जाना जाता है। यह रथ बाकी दोनों रथों से हल्का सा छोटा होता है जिसकी ऊंचाई 12.9 मीटर की होती है। इस रथ को ऊपर से सजाने के लिए लाल और काले कपड़े का इस्तेमाल किया जाता है। इस रथ की हिफाजत माँ दुर्गा करती हैं और इसके सारथी अर्जुन होते हैं।

रथ यात्रा से जुड़ी मान्यताएं-

पौराणिक मान्यताओं के आधार पर जो भी कोई इस रथ यात्रा में शामिल होता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। यात्रा के दौरान रथ खींचने मात्र से 100 यज्ञों जितना पुण्य मिलता है, इसीलिए सभी श्रद्धालु हर पल रथ खींचने को आतुर रहते हैं। जगन्नाथ पुरी और यहां की रथयात्रा का एक अलग ही महत्त्व है। इसका वर्णन हिंदू धर्म के अनेक पुराणों जैसे- स्कंद पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण और ब्रह्म पुराण आदि में मिलता है। अगर आप कभी भी इस यात्रा का हिस्सा नहीं बने हैं, तो एक बार रथयात्रा में शामिल होने जरूर जाएं, आपको एक नया और अलग तरह का अनुभव प्राप्त होगा।

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