एक साल में 24 एकादशी आती हैं। प्रत्येक मास 2 एकादशी आती हैं जब अधमास या मलमास आता है तब महीने की एक एकादशी पूर्णिमा के बाद आती है जो कृष्ण पक्ष की एकादशी होती है। महीने की दूसरी एकादशी अमावस्या के बाद आती है जो शुक्ल पक्ष की एकादशी होती है।
किसी भी एकादशी के दिन मुख्य रूप से श्री हरि भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है। कृष्ण पक्ष वाली एकादशी का व्रत करने से पितरों-पूर्वजों की कृपा प्राप्त होती है, वहीं शुक्ल पक्ष वाली एकादशी का व्रत पितृमातृकाओं एवं मातृमात्रकाओं की प्रसन्नता एवं उनकी मुक्ति के लिए किया जाता है।
1. चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी 'पापमोचनी एकादशी' कहलाती है।
चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी 'कामदा एकादशी' कहलाती है।
2. वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी 'वरूथनी एकादशी' कहलाती है।
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी 'मोहिनी एकादशी' कहलाती है।
3. ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को 'अपरा एकादशी' कहते हैं।
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को 'निर्जला एकादशी' कहते हैं।
4. आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को 'योगिनी एकादशी' कहते हैं।
आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को 'देवशवनी एकादशी' कहते हैं।
5. श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी 'कामिका एकादशी' कहलाती है।
श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी 'पुत्रदा एकादशी' कहलाती है।
6. भाद्रपद (भादों) मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी 'अजा एकादशी' कहलाती है।
भाद्रपद (भादों) मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी 'परिवर्तनी एकादशी' कहलाती है।
7. आश्विन (क्वार) मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी 'इंदिरा एकादशी' कहलाती है।
आश्विन (क्वार) मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी 'पांपाकुशा एकादशी' कहलाती है।
8. कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी 'रमा एकादशी' कहलाती है।
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी 'देव प्रबोधिनी एकादशी' कहलाती है।
9. मार्गशीर्ष (अगहन) के कृष्ण पक्ष की एकादशी 'उत्पन्ना एकादशी' कहलाती है।
मार्गशीर्ष (अगहन) के शुक्ल पक्ष की एकादशी 'मोक्षदा एकादशी' कहलाती है।
10. पौष मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी 'सफला एकादशी' कहलाती है।
पौष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी 'पुत्रदा एकादशी' कहलाती है।
11. माघ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी 'षटतिला एकादशी' कहलाती है।
माघ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी 'जया एकादशी' कहलाती है।
12. फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी 'विजया एकादशी' कहलाती है।
फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी 'आमलकी एकादशी' कहलाती है।
अधिमास में आने वाली कृष्ण पक्ष की एकादशी 'पद्मिनी एकादशी' और शुक्ल पक्ष की एकादशी 'परमा एकादशी' कहलाती है।
साल की किसी भी एकादशी के दिन चावल खाना वर्जित है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन चावल खाने से इंसान अगली बार रेंगने वाले जीव की योनि में जन्म लेता है। (व्रतराज ग्रन्थ के मुताबिक, ग्यारस (एकादशी) को चावल सेवन से मानसिक अशांति होती है। अवसाद यानि डिप्रेशन की संभावना प्रबल हो जाती है।
शरीर में दिन भर आलस्य बना रहता है। इन्हीं सब कारणों के चलते भाग्योदय में रुकावट होती है। ग्यारस का उपवास सभी सनातन धर्मियों को जरूर करना चाहिए। यह शरीर को स्वस्थ्य बनाये रखता है।)
एकादशी के दिन प्रमुख तौर पर भगवान विष्णु का पूजन, अर्चन व ध्यान करना चाहिए। साथ ही, सात्विक भोजन व सात्विक व्यवहार को धारण करना चाहिए।
इस तिथि को मनुष्य को ब्रह्मचर्य का पालन करना अनिवार्य है।
किसी भी तरह की लड़ाई-झगड़े व कड़े शब्दों का प्रयोग करने से बचना चाहिए।
एकादशी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में जागना शुभ माना जाता है। दिन में किसी भी वक्त सोना अनुचित होता है।
एकादशी के दिन दान को परम उत्तम माना गया है। हो सके तो इस दिन गंगा स्नान करना सोने पे सुहागा माना गया है। वैसे तो हर एक एकादशी की अपनी एक महत्ता है लेकिन किसी भी 11 एकादशी लगातार व्रत रखने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है और उसके बाद व्यक्ति को जीवन में अपार सफलता मिलने लगती है।
वर्ष में पड़ने वालीं सभी एकादशियों का विशेष महत्व है मगर ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मानी जाती है। ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को निर्जला एकादशी भी कहा जाता है।
सौभाग्य व मोक्ष की प्राप्ति होती है।
विवाह में आ रही बाधाएं समाप्त हो जाती हैं। कुछ जानकार कहते हैं बाधाएं दूर करने के लिए इस दिन- केसर, केला या हल्दी आदि दान करना चाहिए।
व्यक्ति धनवान व समृद्ध हो जाता है।
सभी रोगों का नाश हो जाता है, व्यक्ति के मन को शांति मिलती है।
सभी कार्य सिद्ध होते हैं। हर मनोकामना पूर्ण होती है. मोह-माया और बंधनों से मुक्ति मिलती है।
पितृदोष की समाप्ति होती है। पितृमातृकाओं का श्राप दूर हो जाता है. पितरों को राक्षस, भूत-पिशाच आदि योनि से छुटकारा मिल जाता है।
सभी सिद्धियों की प्राप्ति होने लगती है।
कीर्ति, वैभव, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
खोया धन वापस मिलता है, दुखों का नाश होता है, सन्तान की प्राप्ति होती है।
मुक़दमे में विजय प्राप्ति होती है शत्रुओं का नाश होता है।
चन्द्रमा व बुध गृह का दोष समाप्त होता है।
मान्यता है, 11 वर्ष तक लगातार नियमित रूप से एकादशी का व्रत करने वाले को अश्वमेध एवं वाजपेय यज्ञ जितना फल मिलता है।
श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार, सर्वप्रथम इस व्रत का बखान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से किया था। जब धर्मराज युधिष्ठिर बहुत ही ज्यादा मानसिक तकलीफों से जूझ रहे थे तब श्री कृष्ण ने उन्हें ये व्रत सुझाया था।
इस समस्त दुःखों, त्रिविध तापों मुक्ति दिलाने वाले व हजारों यज्ञों का फल, चारों पुरुषार्थों को सहज ही देने वाले एकादशी व्रत को सूर्योदय से अगले सूर्योदय तक किया जाता है। इस दिन प्रातः स्नान करके देशी घी के दो दीपक जलाकर कम से कम 5 माला- 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमःशिवाय' का जप करना चाहिए। दूसरों को भोजन करवाएं, गाय, बैल, श्वान आदि को भोजन कराएं लेकिन दूसरे का दिया हुआ अन्न हरगिज ग्रहण न करें।
इस दिन भूल कर भी चावल का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि चावल का स्वरुप भगवान श्री कृष्ण के आराध्य महादेव के शिवलिंग जैसा होता है। आयुर्वेदिक शास्त्रों एवं हरिवंश पुराण में चावल यानि अक्षत और जौ को जीव का दर्जा दिया गया है। महादेव के महान भक्त महर्षि मेधा ने चावल और जौ के रूप में धरती पर जन्म लिया था।
इसीलिए एकादशी के दिन चावल खाना महर्षि मेधा के मांस और रक्त के सेवन करने जैसा माना जाता है। मेधा हमारे ज्ञान, विवेक को भी कहते हैं। इसलिए ग्यारस के दिन चावल के भक्षण से बुद्धि भ्रष्ट कमजोर होने लगती है।
ऐसे ही परम् गुरुभक्त शनिदेव के आराध्य गुरु महर्षि पिप्लाद ने घनघोर तपस्या के फलस्वरूप महादेव से पीपल वृक्ष बनने का वरदान मांगा था। आप गौर करिएगा दुनिया में पीपल के पेड़ के नीचे सर्वाधिक शिवलिंग होते हैं। पीपल में ब्रह्मा-विष्णु-महेश तीनों देवताओं का वास होता है। पीपल के पत्ते नाग फन के आकार के होते हैं।
(नोट- इस लेख में दी गई जानकारियां पौराणिक मान्यताओं व कुछ पौराणिक जानकारों के लेखों के हवाले से ली गई हैं।)