दुनिया की पहली रामायण हनुमान जी ने लिखी थी लेकिन समुद्र में फेंक दी, आखिर क्यों?

दुनिया की पहली रामायण हनुमान जी ने लिखी थी लेकिन समुद्र में फेंक दी, आखिर क्यों?
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Ashish Urmaliya | PM

दुनियाभर में प्रचलित है' और हम सभी जानते हैं कि दुनिया की सबसे पहली रामायण महर्षि वाल्मीकि जी ने लिखी थी. इसके अलावा, आपकी जानकारी के लिए बता दें कि वाल्मीकि रामायण के बाद दुनियाभर में अब तक 24 से ज्यादा भाषाओं में 300 से अधिक रामायण विभिन्न विद्वानों द्वारा लिखी जा चुकी हैं. सिलसिला अभी भी जारी है. आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत के अलावा 9 अन्य देशों की अपनी अलग-अलग रामायण हैं. भारत देश तो रामायण ग्रंथ का जन्मदाता है यहां पर वाल्मीकि रामायण के अलावा गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस भी बेहद लोकप्रिय है. ऐसा कहा जाता है कि गोस्वामी तिलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस वाल्मीकि रामायण का अवधी भाषा में वर्णन है जो कि विशुद्ध व अलौकिक है. लेकिन बहुत ज्ञाता लोग ही यह जानते होंगे कि ब्रह्मांड की सबसे पहली रामायण महर्षि वाल्मीकि जी ने नहीं बल्कि श्री राम भक्त हनुमान जी ने लिखी थी. ऐसी पौराणिक मान्यताएं हैं कि वीर हनुमान जी ने स्वयं द्वारा रचित रामायण को समुद्र में फेंक दिया था. लेकिन इसके पीछे का कारण क्या था? आइए जानते हैं...

बजरंगबली द्वारा रचित रामायण के पीछे की पौराणिक कथा-

श्री राम भक्त हनुमान जी द्वारा लिखी गई रामायण पुराणों में 'हनुमद रामायण' के नाम से प्रचलित है. प्रचलित पौराणिक कथाओं के अनुसार जब रावण पर विजय प्राप्त कर और विभीषण का राजतिलक कर जब भगवान श्री राम लंका से वापस लौटे और अयोध्या राजपाठ संभाला, रामराज्य का प्रारंभ हुआ. इसी बीच हनुमान जी, राम जी से आज्ञा लेकर हिमालय पर तप करने चले गए. हिमालय पर भगवान शिव की आराधना करने के साथ ही अपने सबसे प्रिय भगवान राम को याद करते हुए वहां की शिलाओं पर अपने हाथ के नाखूनों से पूरी रामायण लिख डाली.

बाल्मीकि जी को हताश पाया-

दरअसल संयोग ये हुआ कि एक दिन हनुमान जी उस विराट शिला को उठाकर शिवजी को दिखाने कैलाश पर्वत ले गए. वहीं कुछ समय बाद वाल्मीकि जी भी अपनी लिखी रामायण लेकर भगवान शिव (Lord Shiva) को अर्पित करने पहुंच गए. लेकिन वहां पर पहले से ही हनुमान जी द्वारा लिखी 'हनुमद रामायण' को देखकर और थोड़ा सा ही पढ़ कर वाल्मीकि जी खुद से ही कुंठित(निराश) हो गए. श्री हनुमान जी ने महर्षि वाल्मीकि से उनकी निराशा का कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि आपके द्वारा लिखी गई रामायण के सामने मेरी लेखनी की रामायण कुछ भी नहीं है और मुझे डर है कि भविष्य में मेरी लिखी रामायण की उपेक्षा हो सकती है.

हनुमान जी ने उस शिला को समुद्र में विसर्जित कर दिया-

वाल्मीकि के इन शब्दों को सुनते तनिक भी देर न हुई कि हनुमान जी ने अपने एक कंधे पर 'हनुमद रामायण' लिखी शिला को रखा और दूसरे कंधे पर महर्षि वाल्मीकि जी को बिठाया और समुद्र के पास पहुंच गए. यहां श्री हनुमान जी ने स्वयं द्वारा रचित रामायण को समुद्र को अर्पित कर दिया और इस प्रकार हनुमद रामायण हमेशा के लिए समुद्र की गोद में विसर्जित हो गई और वाल्मीकि जी द्वारा रचित रामायण अमर हो गई.

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