उत्पन्ना एकादशी (मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी)

Utpanna Ekadashi (Margashirsha Krishna Ekadashi)
Utpanna Ekadashi (Margashirsha Krishna Ekadashi)
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उत्पन्ना एकादशी की कथा

(कथा की शुरुआत)

उत्पन्ना एकादशी, जिसे मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की एकादशी कहा जाता है, हिंदू धर्म में अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस एकादशी का व्रत भगवान विष्णु की भक्ति और उनके द्वारा अधर्म और पापों के नाश की अद्भुत कथा से जुड़ा हुआ है। उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को समस्त पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दिन का महत्व इसलिए भी अधिक है क्योंकि यह भगवान विष्णु की लीला से जुड़ा हुआ है, जिसमें उन्होंने पापों का नाश किया था।

कथा का प्रारंभ

बहुत समय पहले, सतयुग में, जब संसार में अधर्म और पाप का अत्यधिक प्रकोप हो गया था, तब धरती पर कई राक्षसों ने उत्पात मचाया। इन राक्षसों का नेतृत्व मुर नामक एक अत्यंत शक्तिशाली और क्रूर दानव कर रहा था। मुर अपनी शक्ति और बल से तीनों लोकों में आतंक फैला रहा था। उसने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया और भगवान विष्णु के भक्तों को भी कष्ट पहुँचाने लगा। उसके अत्याचारों से सभी देवता और ऋषि-मुनि अत्यंत दुखी थे।

भगवान विष्णु का हस्तक्षेप

जब देवताओं को कोई उपाय नहीं सूझा, तो वे सभी भगवान विष्णु के पास पहुंचे और उनसे प्रार्थना की, "हे प्रभु, आप ही हमारे रक्षक हैं। मुर राक्षस ने तीनों लोकों में अत्याचार फैला रखा है। हम सब उसकी शक्ति के आगे असहाय हो गए हैं। कृपया हमें उसकी क्रूरता से बचाइए।"

भगवान विष्णु ने देवताओं की बात सुनी और उन्हें आश्वस्त किया कि वे मुर राक्षस का अंत करेंगे। इसके बाद भगवान विष्णु ने मुर से युद्ध किया। यह युद्ध कई दिनों तक चलता रहा, लेकिन मुर की शक्ति इतनी अधिक थी कि भगवान विष्णु भी उसे सीधे पराजित नहीं कर पा रहे थे।

मुर राक्षस का अंत

युद्ध के दौरान भगवान विष्णु थक गए और विश्राम करने के लिए हिमालय की एक गुफा में चले गए। वहां, भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले गए। जब मुर राक्षस ने भगवान को विश्राम करते देखा, तो उसने यह सोचा कि अब भगवान को मारना सरल होगा, और वह उन पर आक्रमण करने के लिए आगे बढ़ा।

लेकिन तभी भगवान विष्णु के शरीर से एक अद्भुत दिव्य शक्ति प्रकट हुई। यह शक्ति देवी उत्पन्ना के रूप में अवतरित हुई। देवी उत्पन्ना ने मुर राक्षस से युद्ध किया और अपने तेज से उसका वध कर दिया। भगवान विष्णु के जागने पर उन्होंने देवी उत्पन्ना को देखा और उन्हें आशीर्वाद दिया कि उनके नाम पर यह एकादशी व्रत के रूप में पूजनीय होगी। इस प्रकार, इस एकादशी का नाम उत्पन्ना एकादशी पड़ा।

कथा का महत्व

उत्पन्ना एकादशी की कथा यह संदेश देती है कि भगवान विष्णु की भक्ति और धर्म के प्रति निष्ठा से किसी भी कठिनाई का नाश हो सकता है। इस एकादशी के व्रत का पालन करने से व्यक्ति के जीवन के सारे पाप धुल जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत के प्रभाव से भगवान विष्णु की अनंत कृपा प्राप्त होती है और व्यक्ति जीवन में समृद्धि और शांति का अनुभव करता है।

व्रत का फल

उत्पन्ना एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, और वह जीवन में शांति, सुख और मोक्ष की प्राप्ति करता है। यह व्रत पापमोचन के लिए अत्यधिक फलदायी माना गया है, और जो भक्त इसे श्रद्धापूर्वक करते हैं, उन्हें भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त होती है।

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