पुत्रदा एकादशी की कथा (पौष शुक्ल एकादशी)

Putrada Ekadashi (Paush Shukla Ekadashi)
Putrada Ekadashi (Paush Shukla Ekadashi)
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पुत्रदा एकादशी की कथा

(कथा की शुरुआत)

पुत्रदा एकादशी, जो पौष शुक्ल पक्ष की एकादशी के रूप में मनाई जाती है, को विशेष रूप से संतान प्राप्ति की कामना के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। यह व्रत उन दंपत्तियों के लिए बहुत ही पूजनीय है जो संतान की प्राप्ति चाहते हैं। इस व्रत की कथा न केवल हमें धर्म, भक्ति और तपस्या का महत्व सिखाती है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि भगवान की कृपा से असंभव कार्य भी संभव हो सकते हैं।

कथा का प्रारंभ

बहुत समय पहले, भद्रावती नाम का एक समृद्ध नगर था। इस नगर के राजा का नाम सुकेतुमान था। राजा सुकेतुमान धर्मप्रिय, न्यायप्रिय और प्रजा का ख्याल रखने वाला राजा था। लेकिन एक दुःख उसे हमेशा कचोटता था - उसके कोई संतान नहीं थी। राजा और उसकी पत्नी शैव्या ने बहुत से यज्ञ, पूजा-पाठ और अनुष्ठान किए, परंतु संतान सुख नहीं मिल पाया।

राजा और रानी इस बात से बेहद निराश थे और चिंता में डूबे रहते थे कि उनके बाद राज्य का क्या होगा? कौन उनके राज्य का उत्तराधिकारी बनेगा? इस चिंता ने राजा को इतना व्यथित कर दिया कि वह दिन-रात दुःख में डूबे रहते। रानी शैव्या भी संतान न होने के कारण हर दिन दुखी रहती थीं। राजा के मन में यह विचार आया कि वह राज्य छोड़कर वन में तपस्या करें और अपने भाग्य को सुधारने का प्रयास करें।

वन की यात्रा

एक दिन, संतान न होने के दुःख में डूबे राजा सुकेतुमान ने निश्चय किया कि वह कुछ दिनों के लिए वन चले जाएंगे और अपने दुःख से मुक्ति पाने का उपाय खोजेंगे। उन्होंने अपना रथ तैयार कराया और अकेले ही वन की ओर निकल पड़े। वन के शांत वातावरण में उन्होंने सोचा कि वह अब अपने दुःख को दूर करने का कोई मार्ग अवश्य पाएंगे।

कई दिन तक वन में भटकने के बाद, राजा अचानक एक पवित्र सरोवर के पास पहुंचे। सरोवर का पानी अत्यंत स्वच्छ और निर्मल था। पास ही कई ऋषि-मुनि तपस्या में लीन थे। राजा सुकेतुमान ने उन ऋषियों को प्रणाम किया और उनकी कृपा से अपने दुःख का निवारण चाहा।

पुत्रदा एकादशी का महत्व

ऋषि-मुनियों ने राजा को देखकर उनकी व्यथा को समझा। उन्होंने कहा, "राजन, आज पौष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी है, जिसे पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। इस दिन भगवान विष्णु का व्रत करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। जो कोई इस व्रत को करता है, उसे पुत्र प्राप्ति का वरदान मिलता है।"

राजा सुकेतुमान ने ऋषियों से व्रत की विधि जानकर तुरंत ही पुत्रदा एकादशी का व्रत करने का निश्चय किया। उन्होंने पूरे विधि-विधान से व्रत का पालन किया और भगवान विष्णु की आराधना की। राजा ने अत्यंत भक्ति और श्रद्धा के साथ रात भर जागरण किया और व्रत का संपूर्ण पालन किया।

भगवान विष्णु का वरदान

राजा सुकेतुमान की भक्ति और व्रत से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन दिए। भगवान ने कहा, "राजन, तुम्हारी श्रद्धा और भक्ति के कारण मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ। तुमने पुत्रदा एकादशी का व्रत किया है और इसलिए मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूँ कि तुम्हें एक तेजस्वी और धर्मपरायण पुत्र की प्राप्ति होगी, जो तुम्हारे राज्य का योग्य उत्तराधिकारी बनेगा।"

भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त कर राजा सुकेतुमान अत्यंत आनंदित हुए और उन्होंने भगवान का धन्यवाद किया। कुछ समय बाद, रानी शैव्या को गर्भ धारण हुआ और उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। वह पुत्र वीर, बुद्धिमान और धर्मशील था। राजा सुकेतुमान और रानी शैव्या का दुःख दूर हो गया और उनका राज्य भी पुनः समृद्ध हो गया।

कथा का संदेश

पुत्रदा एकादशी की यह कथा हमें यह सिखाती है कि भगवान की भक्ति और व्रत का पालन हमें हर प्रकार की समस्याओं से मुक्ति दिला सकता है। जो भी व्यक्ति इस व्रत को सच्चे हृदय से करता है, उसे संतान सुख और परिवारिक खुशियों की प्राप्ति होती है।

भगवान विष्णु के आशीर्वाद से असंभव भी संभव हो जाता है, और पुत्रदा एकादशी का व्रत इसके सबसे बड़े प्रमाण के रूप में माना जाता है।

"इस व्रत के पालन से संतान सुख और भगवान की कृपा प्राप्त होती है।"

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