(कथा की शुरुआत)
सफला एकादशी, जिसे पौष कृष्ण एकादशी के नाम से जाना जाता है, हिंदू धर्म में अत्यधिक पुण्यदायी मानी जाती है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है, और इसका पालन करने से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में सफलता प्राप्त होती है। सफला एकादशी का व्रत जीवन में समृद्धि और शांति लाने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। इस व्रत के पालन से व्यक्ति को भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है। आइए, इस व्रत से जुड़ी कथा को जानते हैं।
प्राचीन समय में महिष्मति नामक नगर पर महिष्मान नामक राजा का शासन था। राजा महिष्मान भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे और अपने धर्म का पालन करते हुए न्यायप्रियता से राज्य का संचालन करते थे। राजा का राज्य सुख और समृद्धि से भरा हुआ था, लेकिन राजा को अपने बड़े पुत्र लुंभक के कारण बहुत दुख होता था।
लुंभक अधर्मी और पापी प्रवृत्ति का था। वह न केवल अपने माता-पिता का अपमान करता था, बल्कि वह राज्य की प्रजा को भी परेशान करता था। राजा महिष्मान ने कई बार उसे समझाने का प्रयास किया, लेकिन लुंभक अपनी बुरी आदतों से कभी नहीं सुधरा। अंत में राजा ने उसे राज्य से निष्कासित कर दिया और वह जंगल में रहने लगा।
निष्कासित होकर लुंभक जंगल में जाकर रहने लगा, जहाँ वह चोरी-डकैती करके अपना पेट भरता था। वह दिन-रात अपने पाप कर्मों में लिप्त रहता था। परंतु लुंभक को यह ज्ञात नहीं था कि भगवान विष्णु की कृपा से वह अभी भी सुरक्षित था। एक दिन, पौष कृष्ण एकादशी के दिन, लुंभक बहुत बीमार और कमजोर हो गया। वह भूखा था और भोजन की तलाश में जंगल में भटक रहा था। उस दिन उसने कुछ फल और पेड़ों की पत्तियाँ एकत्रित कीं और ठंड से कांपते हुए वृक्ष के नीचे सो गया।
अगले दिन, जब लुंभक जागा, तो उसने देखा कि वह एक पवित्र वृक्ष के नीचे सोया हुआ था, जो भगवान विष्णु का प्रिय था। बिना जाने-समझे उसने एकादशी का व्रत रख लिया था। उसने फल और पत्तियाँ भगवान विष्णु को अर्पित कर दीं। भगवान विष्णु उसकी इस अनजाने में की गई भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हुए।
भगवान विष्णु ने लुंभक की अनजानी भक्ति और व्रत को स्वीकार कर लिया। उन्होंने उसे दर्शन देकर कहा, "हे लुंभक, तुमने अनजाने में ही सही, लेकिन सफला एकादशी का व्रत किया है। इसके प्रभाव से तुम्हारे सभी पाप समाप्त हो गए हैं। अब तुम अपने राज्य लौट जाओ और धर्म का पालन करो। तुम्हें सफलता और समृद्धि प्राप्त होगी।"
भगवान विष्णु की कृपा से लुंभक का जीवन बदल गया। वह वापस अपने राज्य गया और अपने पिता से क्षमा मांगकर धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने लगा। राजा महिष्मान ने उसे क्षमा कर दिया और उसे पुनः राज्य का उत्तराधिकारी बना दिया। लुंभक ने अपनी प्रजा की सेवा में अपना जीवन व्यतीत किया और धर्म के मार्ग पर चलते हुए राजा बना।
सफला एकादशी की यह कथा हमें यह सिखाती है कि भगवान विष्णु की भक्ति और व्रत के पालन से व्यक्ति के जीवन में चाहे कितने भी पाप क्यों न हो, सभी का नाश हो सकता है। सफला एकादशी का व्रत व्यक्ति को सफलता, समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति दिलाता है। जो भी इस व्रत का पालन श्रद्धापूर्वक करता है, उसे भगवान विष्णु की अनंत कृपा प्राप्त होती है।
"सफला एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और भगवान विष्णु की कृपा से उसे मोक्ष और सफलता की प्राप्ति होती है।"