(कथा की शुरुआत)
हिन्दू धर्म में एकादशी का विशेष महत्त्व है, और माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन का व्रत रखने से व्यक्ति सभी पापों से मुक्ति पाता है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत की कथा अत्यंत रोचक और प्रेरणादायक है, जो हमें यह सिखाती है कि भगवान विष्णु की भक्ति और व्रत से असंभव भी संभव हो जाता है।
बहुत समय पहले, देवलोक में भगवान इन्द्र का शासन था। इन्द्र की सभा में विभिन्न देवगण और गंधर्व नृत्य और संगीत से वातावरण को मधुर बनाते थे। इनमें से एक था माल्यवान, जो बहुत ही योग्य गंधर्व था और अपनी पत्नी पुष्पवती के साथ स्वर्ग में रहता था। पुष्पवती अत्यंत सुंदर और कला में निपुण थी। वह भी स्वर्गीय संगीत और नृत्य में पारंगत थी।
एक बार, भगवान इन्द्र की सभा में नृत्य और संगीत का आयोजन हुआ। सभी देवगण और गंधर्व इसमें सम्मिलित हुए। माल्यवान और पुष्पवती को भी इस आयोजन में नृत्य प्रस्तुत करने का अवसर मिला। लेकिन उस दिन पुष्पवती का मन कहीं और लगा हुआ था। उसका ध्यान नृत्य पर नहीं था, और वह सही ढंग से नृत्य नहीं कर पा रही थी। माल्यवान भी उसकी इस अवस्था को देखकर विचलित हो गया।
पुष्पवती का ध्यान नृत्य पर नहीं था, जिससे माल्यवान भी सही तरीके से नृत्य नहीं कर पा रहा था। दोनों का प्रदर्शन असंगत और अव्यवस्थित हो गया। भगवान इन्द्र को यह देखकर बहुत क्रोध आया। उन्होंने दोनों पर क्रोध व्यक्त किया और कहा, "तुम दोनों ने मेरे समक्ष नृत्य करते हुए लापरवाही की है। तुम्हारे इस अपमानजनक कृत्य के लिए मैं तुम्हें शाप देता हूँ कि तुम दोनों स्वर्ग से गिरकर पृथ्वी पर राक्षस योनि में जन्म लोगे।"
इन्द्र के शाप के कारण माल्यवान और पुष्पवती तुरंत राक्षस योनि में जन्म लेने के लिए धरती पर आ गए। अब वे भयानक और कुरूप राक्षसों के रूप में जीवन व्यतीत कर रहे थे। जंगलों में भटकते हुए वे भूख-प्यास से परेशान रहते, और उनका जीवन अत्यंत दुखदायी हो गया।
माल्यवान और पुष्पवती का जीवन अत्यंत दुखपूर्ण था। एक दिन, वे दोनों अत्यंत थकान और पीड़ा में एक पेड़ के नीचे बैठे। उस दिन माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी थी। दुर्भाग्यवश, उनके पास उस दिन भोजन के लिए कुछ भी नहीं था, और वे भूखे-प्यासे रह गए। संयोगवश, उन्होंने इस दिन कोई पाप या अहितकारी कार्य भी नहीं किया। इस प्रकार, बिना जाने ही, उन्होंने जया एकादशी का व्रत पूर्ण कर लिया।
इस व्रत का प्रभाव अद्भुत था। उनकी भूख-प्यास और कष्ट धीरे-धीरे समाप्त हो गए, और भगवान विष्णु की कृपा से उन्हें राक्षस योनि से मुक्ति प्राप्त हुई। वे पुनः अपने दिव्य रूप में वापस लौट आए और स्वर्ग में अपना स्थान प्राप्त किया।
भगवान विष्णु ने माल्यवान और पुष्पवती को आशीर्वाद दिया और कहा, "तुमने बिना जान-बूझकर जया एकादशी का व्रत किया, जिसके प्रभाव से तुम्हें राक्षस योनि से मुक्ति मिली है। जो कोई भी जया एकादशी का व्रत करेगा, उसके सारे पाप नष्ट हो जाएंगे, और वह मोक्ष प्राप्त करेगा।"
जया एकादशी की यह कथा हमें यह सिखाती है कि भगवान विष्णु की भक्ति और एकादशी व्रत का कितना महत्व है। इस व्रत से न केवल पापों का नाश होता है, बल्कि व्यक्ति को सभी दुखों और कठिनाइयों से मुक्ति मिलती है।
इस एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है, और जीवन में शांति, समृद्धि और मोक्ष का मार्ग खुलता है। जया एकादशी विशेष रूप से उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण है, जो अपने जीवन में सुख-शांति और पापमुक्ति की कामना करते हैं।
"जो कोई जया एकादशी का व्रत करता है, उसे भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है और वह सभी पापों से मुक्त होकर मोक्ष की प्राप्ति करता है।"