हॉकी(Hockey) के जादूगर मेजर ध्यानचंद(Major Dhyan Chand) को गोल करने की अद्भुत कला हासिल थी, वह खेल के मैदान में जब अपनी हॉकी(Hockey) उठाते तो विरोधी टीम बिखर जाती थी वह अपना हौसला हारने लगती थी। भारतीय हॉकी टीम(Hockey Team) के कप्तान रह चुके ध्यानचंद(Dhyan Chand) ने देश को तीन बार स्वर्ण पदक भी दिलाया। भारत और विश्व हॉकी के सर्वश्रेष्ठ खिलाडियों में उनकी गिनती होती है।
उनकी जन्मतिथि को भारत में "राष्ट्रीय खेल दिवस(National Sports Day)" के रूप में मनाया जाता है। जहाँ अच्छा प्रदर्शन करने वाले खिलाडियों को भारत के राष्ट्रपति "राजीव गाँधी खेल-रत्न पुरस्कार(Rajiv Gandhi Khel-Ratna Award)", "अर्जुन पुरस्कार (Arjuna Award)", और "द्रोणाचार्य पुरस्कार(Dronacharya Award)" जैसे पुरस्कार प्रदान करते है। उन्हें हॉकी(Hockey) का जादूगर भी कहा जाता है। उन्होंने अपने खेल जीवन में 1000 से अधिक गोल दागे है। उन्हें 1956 में पद्मभूषण(Padmabhushan) से नवाज़ा गया।
अलग-अलग लोगों ने, अलग-अलग समय पर उन्हें "भारत रत्न(Bharat Ratna)" से सम्मानित करने की मांग की यहाँ तक की खेल मंत्री विजय गोयल(Sports Minister Vijay Goyal) ने प्रधानमंत्री(Prime Minister) को चिट्ठी लिखी जिसमें ध्यानचंद(Dhyan Chand) को भारत रत्न देने की मांग की।
29 अगस्त, 1905 को इलाहाबाद(Allahabad) में मेजर ध्यानचंद(Major Dhyan Chand) का जन्म हुआ। उनका जन्म एक राजपूत परिवार में हुआ था। बालपन में उनके अंदर कोई खिलाड़ियों वाले लक्षण नहीं दिखाई देते थे बल्कि उन्होंने संघर्ष, लगन, अभ्यास और संकल्प के कारण यह प्रतिष्ठा प्राप्त की।
साधारण शिक्षा प्राप्त करने के बाद 16 साल की उम्र में 1922 में दिल्ली(Delhi) के प्रथम ब्राह्मण रेजीमेंट(Brahmin Regiment) में एक साधारण सिपाही के तौर पर भर्ती हो गए।
"फर्स्ट ब्राह्मण रेजीमेंट(First Brahmin Regiment)" में भर्ती होते समय भी ध्यानचंद (Dhyan Chand) के मन में हॉकी के प्रति कोई विशेष दिलचस्पी नहीं थी। ध्यानचंद(Dhyan Chand) को हॉकी खेलने के लिए प्रेरित करने का सारा श्रेय रेजीमेंट के एक सुबेदार मेजर तिवारी(Subedar Major Tiwari) को जाता है।
मेजर तिवारी(Major Tiwari) खुद भी एक हॉकी प्रेमी और खिलाड़ी थे। मेजर तिवारी (Major Tiwari) की देख-रेख में वह हॉकी खेलने लगे और देखते ही देखते वह दुनिया के महान हॉकी के खिलाडी बन गए। 1927 में उन्हें लॉन्स नायक(lance hero) बना दिया गया।
जब 1937 में वह भारतीय हॉकी दल के कप्तान थे तब उन्हें सुबेदार बना दिया गया। जब द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ तब 1943 में उन्हें "लेफ्टिनेंट(Lieutenant)" बना दिया गया और आज़ादी के बाद 1948 में उन्हें कप्तान बना दिया गया। बाद में उन्हें मेजर के पद पर नियुक्त किया गया।
1928 में एम्स्टर्डम ओलम्पिक खेलों(amsterdam olympic games) में पहली बार भारतीय टीम ने भाग लिया लेकिन ओलम्पिक(olympics) में खेलने से पहले उन्होंने इंग्लैंड (England) में 11 मैच खेले जहाँ ध्यानचंद(Dhyan Chand) को विशेष सफलता प्राप्त हुई।
एम्स्टर्डम(Amsterdam) में भारतीय टीम पहले सभी खेल जीत गई। भारतीय टीम ने 17 मई, 1928 को आस्ट्रिया(Austria) को 6-0, 18 मई को बेल्जियम(belgium) को 9-0, 20 मई को डेनमार्क(denmark) को 5-0 और 26 मई को फाइनल मैच में हॉलैंड(holland) को 3-0 से हरा कर विश्व में हॉकी के चैम्पियन बन गए।
1932 में लास एंजिलस(los angeles) में हुए ओलम्पिक में भी ध्यानचंद(Dhyanchand) को टीम में शामिल कर लिया गया और उस वक्त भी सेंटर फॉरवर्ड(Center forward) के रूप में उन्होंने काफी सफलता और शोहरत हासिल की।इस दौरे के वक्त भारत ने काफ़ी मैच खेले और इस यात्रा में ध्यानचंद(Dhyanchand) ने 262 से में 101 गोल तो खुद ही किए। अंतिम मैच में भारत ने अमेरिका(America) को 24-1 से हराया था तब एक अमेरिकी(America) समाचार पत्र ने लिखा था कि भारतीय हॉकी टीम तो पूर्व से आया तूफान था।
उन्होंने अपने वेग से अमेरिकी टीम(America Team) के ग्यारह खिलाडियों को कुचल दिया। 1936 के बर्लिन ओलम्पिक खेलों में ध्यानचंद को भारतीय टीम का कप्तान चुन लिया।
इस बात पर उन्होंने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा, "मुझे ज़रा भी आशा नहीं थी कि मैं कप्तान चुना जाऊँगा", उन्होंने अपने सारे फ़र्ज़ बड़ी ईमानदारी से निभाए है। बर्लिन में एक प्रदर्शनी मैच का आयोजन 17 जुलाई को भारत और जर्मनी के बीच हुआ जिसमें भारत 4-1 से हार गया।
इस हार का ध्यानचंद को बड़ा धक्का लगा, उन्होंने कहा कि "इस हार को मैं जीते-जी भूल नहीं सकता।"ध्यानचंद ने अपनी करिश्माई हॉकी से ना केवल जर्मन के तानाशाह हिटलर बल्कि महान क्रिकेटर डॉन ब्रैडमैन को भी अपना कायल बना दिया था।
1935 की बात है जब भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया(Australia) और न्यूज़ीलैंड(New Zealand) के दौरे पर गई थी तब भारतीय टीम एक मैच के लिए एडिलेंट में थी और ब्रैडमेन भी वहाँ मैच खेलने गए थे।
वहाँ ध्यानचंद और ब्रैडमेन(bradman) एक दूसरे से मिले तब ब्रैडमेन(bradman) ने हॉकी के जादूगर का खेल देखने के बाद कहा कि "वह इस तरह से गोल करते हैं, जैसे क्रिकेट में रन बनते हैं।" यही नहीं जब ब्रैडमेन को पता चला की ध्यानचंद ने इस दौरे में 48 मैच में 201 गोल किए तब उन्होंने कहा था कि "यह किसी हॉकी प्लेयर ने बनाए या क्रिकेटर ने।"
1956 में उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया गया और उनके खेल जगत में योगदान के लिए उनको भारत रत्न देने की बात की जा रही है।
हॉकी के चैम्पियन 1979 में कैंसर से जंग हार गए और एक लम्बी लड़ाई के बाद उनका निधन हो गया। उनके निधन के बाद दिल्ली में उन्हें सम्मानित करते हुए एक हॉकी स्टेडियम का उद्घाटन किया गया इसके अलावा भारतीय डाक सेवा में भी उनके नाम से डाक टिकट शुरू हो गई।