इंदिरा गाँधी को पद से बर्खास्त करने के लिए उन्होंने "सम्पूर्ण क्रांति" नाम का आन्दोलन चलाया जिन्हें "लोकनायक" के नाम से जाना जाता था

इंदिरा गाँधी को पद से बर्खास्त करने के लिए उन्होंने "सम्पूर्ण क्रांति" नाम का आन्दोलन चलाया जिन्हें "लोकनायक" के नाम से जाना जाता था
इंदिरा गाँधी को पद से बर्खास्त करने के लिए उन्होंने "सम्पूर्ण क्रांति" नाम का आन्दोलन चलाया जिन्हें "लोकनायक" के नाम से जाना जाता था
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भारतीय स्वतंत्रता के लोकनायक जयप्रकाश नारायण(Loknayak Jaiprakash Narayan) 1970 में इंदिरा गाँधी(Indira Gandhi) के विरुद्ध के विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए जाने जाते है। इंदिरा गाँधी को पद से बर्खास्त करने के लिए उन्होंने "सम्पूर्ण क्रांति(total revolution)" नाम का आन्दोलन चलाया।

वह समाज-सेवक थे जिन्हें "लोकनायक(Loknayak)" के नाम से जाना जाता था। 1998 में उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया गया इसके अलावा उन्हें 1965 में समाजसेवा के लिए मैगससे पुरस्कार(magsaysay award) भी मिला। पटना में एक हवाई अड्डे का नाम उनके नाम पर रखा गया और दिल्ली सरकार का सबसे बड़ा अस्पताल "लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल(Loknayak Jaiprakash Hospital)" भी उनके नाम पर है।

जीवन परिचय

नारायण का जन्म बिहार(Bihar) के सिताब दियारा में 11 अक्टूबर, 1902 में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। अक्टूबर 1920 में उन्होंने प्रभावती से विवाह कर लिया जो बिहार के प्रसिद्ध गांधीवाद बृज किशोरी प्रसाद(Brij Kishori Prasad) की बेटी थीं।

शादी के बाद प्रभावती कस्तूरबा गाँधी के साथ गाँधी आश्रम(Gandhi Ashram) में रहने लगी तो नारायण डॉ.राजेन्द्र प्रसाद(Narayan DrRajendra Prasad) और डॉ.अनुग्रह नारायण सिन्हा(Dr. Anugrah Narayan Sinha) द्वारा स्थापित बिहार(Bihar) विद्यापीठ में शामिल हो गए। 1929 में जब वह अमेरिका(America) से लौटे तब भारतीय स्वतंत्रता संग्राम ज़ोरो-शोरो से जारी था।

1932 में गांधी(Gandhi), नेहरू(Nehru) और अन्य महत्वपूर्ण कांग्रेसी नेताओं के जेल जाने के बाद उन्होंने भारत के अलग-अलग हिस्सों में विरोधों का नेतृत्व किया। पर अंत में उन्हें भी मद्रास(Madras) में सितम्बर 1932 में गिरफ्तार कर लिया और नासिक(Nasik) के जेल में भेज दिया गया।

1939 में दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान एक आंदोलन शुरू हुआ जिसमें अंग्रेजी हुकूमत को दिए जाने वाला किराया और राजस्व रोकने की बात चल रही थी जिसका नेतृत्व नारायण ने किया। टाटा स्टील कंपनी(Tata Steel Company) में हड़ताल करा दी ताकि अँग्रेज़ों तक स्टील न पहुंचे, जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर 9 महीने की सजा सुना दी।

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उन्होंने बहुत से आंदोलन का नेतृत्व किया, बहुत से आंदोल की शुरुआत भी की जिसके बाद उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। नारायण गाँधी और नेहरू के जितने बड़े समर्थक थे इंदिरा (Indra Gandhi) के उतने ही बड़े विरोधी, इंदिरा की प्रशासनिक नीतियों का विरोध उन्होंने हमेशा किया। बिहार में सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ उन्होंने एक आंदोलन किया।

1975 में इंदिरा ने आपातकाल(Emergency) की घोषणा कर दी जिसके बाद नारायण के साथ कुल 600 लोगों को जेल भेज दिया गया और प्रेस पर सेंसरशिप(censorship) लगा दी। जेल में नारायण की तबीयत बिगड़ने से उन्हें रिहा कर दिया और 8 अक्टूबर, 1979 को पटना में उनका निधन हो गया।

शिक्षा और जीवन

पटना में पढ़ते जयप्रकश नारायण(Jai Prakash Narayan) ने अपने विद्यार्थी जीवन में ही स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया और वह विद्यापीठ में शामिल हो गये। विद्यापीठ को युवा प्रतिभाशाली युवाओं को प्रेरित करने के लिए डॉ. राजेन्द्र प्रसाद(Dr.Rajendra Prasad) और गांधीवादी डॉ. अनुग्रह नारायण सिन्हा(Gandhian Dr. Anugrah Narayan Sinha) ने स्थापित किया था।

बिहार(Bihar) के पहले उप-मुख्यमंत्री और वित्त-मंत्री रह चुके नारायण 1922 में उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका चले गए। अमेरिका में वह 1922-1929 के बीच कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय (University of California), बरकली(Berkley), विसकांसन विश्वविद्यालय (University of Wisconsin) में समाज-शास्त्र की पढाई करने लगे।

अपनी महंगी पढाई के खर्चे उठाने के लिए उन्होंने खेतों, कम्पनियों और रेस्टोरेंट में काम किया। उनको मार्क्स के समाजवाद ने बड़ा प्रभावित किया। उन्होंने एम.ए. की डिग्री ली और माँ की तबीयत ठीक ना होने के कारण भारत लौट आए और पी.एच.डी(PHD) की पढाई उन्होंने भारत से की।

आज़ादी की लड़ाई से लेकर 1977 तक सारे आंदोलनों की मशाल थामने वाले नारायण का नाम देश में उस व्यक्ति के रूप में आता है जिसने अपनी सोच, दर्शन और व्यक्तित्व से देश की दिशा तय की। नारायण ने सम्पूर्ण क्रांति की वह परिभाषा देश के आगे राखी जिसने लोगों को सोचने और देखने के लिए अलग नजरिया दिया, जो लोगों के दिल-दिमाग में आज भी छाया हुआ है।

उनका कहना था, "भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोज़गारी दूर करना, शिक्षा में क्रांति लाना आदि ऐसी चीज़ें है जो आज की व्यवस्था से पूरी नहीं हो सकती क्योंकि वह इस व्यवस्था की ही उपज है। वह तभी पूरी हो सकती है जब संपूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए, और सम्पूर्ण व्यवस्था में परिवर्तन के लिए क्रांति व सम्पूर्ण क्रांति आवश्यक है।“

जयप्रकाश नारायण(Jai Prakash Narayan) को लोग इतना प्यार देते थे, उनका इतना सम्मान करते थे की उनकी एक आवाज़ पर नौजवानों का जमावड़ा सड़क पर आ उतरता।

दिल्ली के रामलीला मैदान में एक लाख से ज़्यादा लोगों ने जयप्रकाश नारायण(Jai Prakash Narayan) की गिरफ्तारी के खिलाफ आवाज़ उठाई तो धरती से आसमान तक हिल गया और उनकी आवाज़ गूंजती रही। उस समय राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर ने कहा था "सिंहासन खाली करो की जनता आती है।"

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