आम नागरिकों का जीवन आसान बनाने और भ्रष्टाचार(Corruption) दूर करने में तकनीक ने बहुत मदत की है। देश की सरकारों ने भी तकनीकी क्षमता को पहचानते हुए इस ओर तेज़ी से कदम बढ़ाया है। एक अदद आधार कार्ड(Adhar Card) से आम नागरिकों की ज़िन्दगी में बदलाव आया है। सरकारी एजेंसियों को भी अपनी ज़िम्मेदारियाँ पूरी करने में सुविधा हुई है।
अब आधार के तर्ज़ पर ही ज़मीनों की भी पहचान संख्या जारी की जा रही है। साथ ही भूखंडों के ब्योरों का कम्प्यूटरी करण करके उन्हें ऑनलाइन(Online) किया जा रहा है। अब ज़मीनों की विशिष्ट संख्या तैयार की जा रही है। डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकरण कार्यक्रम(Digital India Land Records Modernization Program[DRLRMP]) के तहत डिजिटल लैंड रिकॉर्ड(Digital Land Record) तैयार किया जा रहा है।
केंद्र और राज्य सरकार मिलकर डिजिटल लैंड रिकॉर्ड को तैयार कर रहें हैं। यानी आने वाले दिनों में महज़ एक क्लिक पर आपके ज़मीन से संबंधित सारी जानकारियां आपके सामने मौजूद होगा। इसके लागू होने से संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन(Registration) भी तय करना आसान है क्योंकि इससे सरकारी दफ्तरों के कई चक्कर लगाने से मुक्ति मिलेगी।
और ज़मीन रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया(Process of Land Registration) पूरी करने के महज़ एक-दो बार ही सरकारी कार्यालय जाने की ज़रूरत पड़ेगी। इस योजना को "डिजिटल भारत भू-अभिलेख आधुनिकरण कार्यक्रम" के एक भाग के रूप में एक संसदीय स्थायी समिति द्वारा लोकसभा में प्रस्तुत रिपोर्ट में प्रस्तावित किया है।
गौरतलब है कि "डिजिटल भारत भू-अभिलेख आधुनिकरण कार्यक्रम {DILRMP] की शुरुआत साल 2008 में की गई थी जिसका बाद के सालों में कई बार विस्तार किया गया था।
"विशिष्ट भूखंड पहचान संख्या" Unique Land Parcel Identification Number-ULPIN के माध्यम से उचित भूमि सांख्यिकी और भूमि लेखांकन के कार्यों को संपन्न किया जा सकता है जो भूमि विकास बैंकों को विकसित करने में सहायक होगा तथा एकीकृत भूमि सुचना प्रबंधन प्रणाली की ओर ले जाने में मदत करेगा।
केंद्र सरकार ने मार्च 2022 से पुरे देश में यूनिक लैंड पार्सल आइडेंटिफिकेशन नंबर योजना को लांच करने की तैयारी कर रखी है। 14 अंकों वाला यह नंबर देश में हर ज़मीन के टुकड़े को दिया जाएगा जिसे ज़मीन का "आधार कार्ड" कहा जा रहा है।
दरअसल इसके लिए देशभर में लैंड रिकॉर्डस(Land Records) का डिजिटलीकरण (Digitalization) हो रहा है और ज़मीनों के हर प्लॉट के ब्योरे को सर्वे करके उसे ऑनलाइन किया जा रहा है। लक्ष्य है ज़मीन के हर टुकड़े के लिए विशेष पहचान वाला नंबर जारी करना है। यानी जिस तरह से "आधार कार्ड" के ज़रिए भारत में किसी भी व्यक्ति का पूरा ब्यौरा मिल जाता है उसी तरह से ULPIN से किसी भी ज़मीन का पूरा रिकॉर्ड एक क्लिक में प्राप्त किया जा सकेगा।
ULPIN का पूरा नाम विशिष्ट भूमि पार्सल पहचान संख्या कहते है। ULPIN एक 14 Digit का नंबर है। ULPIN को "भूमि की संख्या के रूप में वर्णित किया जाता है। यह एक ऐसी संख्या है जो भूमि के उस प्रत्येक खंड की पहचान करेगी जिसका सर्वेक्षण हो चूका है।
इसके तहत भूखंड(Plot) की पहचान उसके देशांतर और अक्षांश के आधार पर की जाएगी जो विस्तृत सर्वेक्षण और संदर्भित भू संपत्ति-मानचित्र करण पर निर्भर होगी। यह साल 2008 में शुरू हुए डिजिटल इंडिया भू-अभिलेख आधुनिकरण कार्यक्रम का अगला चरण है।
ULPIN का परीक्षण हरियाणा(Haryana), बिहार(Bihar), ओडिशा(Orissa), झारखंड(Jharkhand), महाराष्ट्र(Maharashtra), आंध्र प्रदेश(Andhra Pradesh), गुजरात(Gujarat), सिक्किम(Sikkim), गोवा(Goa), मध्य प्रदेश(Madhya Pradesh) और कर्नाटक(Karnataka) राज्यों में सफलतापूर्वक किया गया है। ULPIN को Digital India Land Records Modernization Program [DILRMP] में शामिल किया गया है।
DILRMP को 2008 में शुरू किया गया था और इसे कई बार बढ़ाया गया है। ULPIN का वर्तमान लांच भी DILRMP के तहत है। भारत राष्ट्रीय जैरेरिक दस्तावेज़ पंजीकरण प्रणाली(National Generic Document Registration System) भी लागू कर रहा है। हाल ही में यह प्रणाली जम्मू और कश्मीर(Jammu & Kashmir) में लागू की गई थी।
ULPIN के बहुपक्षीय लाभ हैं। जानकारी का यह एकल स्त्रोत, भू-स्वामित्व प्रमाणित कर सकता है और इससे भू-स्वामित्व संबंधी संदिग्ध दावे समाप्त होंगे। यह आसानी से सरकारी भूमि की पहचान करने में सहायक होगा तथा न्यायटिन भूमि-लेनदेन से बचाएगा। ULPIN एक लैंड बैंक(Land Bank) विकसित करने में मदत करेगा।
ULPIN प्रणाली भारत को एकीकृत भूमि सुचना प्रबंधन प्रणाली की ओर ले जाएगी। भूमि रिकॉर्ड को अपडेटेट रखने के लिए यह सिस्टम मदत करेगा। यह संख्या विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि धोखाधड़ी को रोकने में मदत करेगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि ग्रामीण इलाकों में ज़मीन के रिकॉर्ड पुराने होते है।
यह प्रणाली विभागों में भूमि रिकॉर्ड डेटा(Land Record Data) को साझा करना आसान बना देगी। यह भूमि डेटा को मानकीकृत करेगा और विभागों में प्रभावी एकीकरण और इंटर ऑपेराबिलित लाएगा। यह Land Parcel योजना भूमि की देशांतर और अक्षांश निर्देशांक पर आधारित होगी सभी भूमि की मैपिंग की जाएगी जिससे विस्तृत सर्वेक्षण और भू-संदर्भित मानचित्र पर आसानी से भूमि की पहचान की जा सकेगी।
इस कार्यक्रम को "भूमि के लिए आधार" यानी "The Aadhaar for land" नाम दिया गया है। इसके अंतर्गत जो नंबर भूमि मालिक को दी जाएगी वह भूमि के हर सर्वेक्षण किए गए पार्सल की पहचान करेगी।
इसके लागू होने से भूमि के असली मालिक की पहचान सरकार के पास होंगी जिससे भूमि धोखाधड़ी पर रोक लगेगी, विशेष रूप से ग्रामीण भारत के पिछड़े इलाके में विवादित भूमि रिकॉर्ड को पहचान मिलेगी।
देश में हर भूखंड को विशेष पहचान वाला नंबर देने का मकसद जमीनों से जुडी धोखाधड़ी को रोकना है। खासकर भारत के ग्रामीण इलाकों में यह बहुत ही बड़ी समस्या रही है जहां ज़मीनी दस्तावेज़ काफी पुराने हो चुके है।
कई दस्तावेज़ अरबी-फ़ारसी में लिखे मिलते हैं जिनके लिए हर जगह ट्रांसलेटर मिलना भी मुश्किल है। इसकी वजह से अदालतों में सिविल सूट(civil suit) के मामलों की भरमार लगी हुई हैं। जमीन विवाद की वजह से भ्रष्ट सरकारी बाबुओं और ज़मीन नापने वाले लोगों को भी अवैध वसूली का मौका मिल जाता है।
यह योजना भूमि धोखाधड़ी और विवादों को रोकने के लिए है। सभी विवरणों को डिजिटल किया जाएगा और भूमि पार्सल के देशांतर और अक्षांश निर्देशांक के आधार पर बनाए रखा जाएगा। यह विस्तृत सर्वेक्षण और भू-संदर्भित केडस्ट्राल मानचित्र(Georeferenced Cadastral Map) पर निर्भर करेगा। इस योजना के तहत आधार विवरण को भूमि रिकॉर्ड के साथ जोड़ने पर 13 रूपए प्रति रिकॉर्ड की लागत है।
जमींदार के आधार विवरण की सीडिंग और प्रमाणीकरण के लिए 5 रूपए प्रति रिकॉर्ड की लागत है। जमींदार के आधार विवरण की सीडिंग और प्रमाणीकरण के लिए 5 रूपए प्रति रिकॉर्ड की लागत है। आधुनिक भूमि रिकॉर्ड रूम बनाने में 50 लाख रूपए पीआर जिले और राजस्व न्यायालय प्रबंधन प्रणाली के साथ भूमि के रिकॉर्ड का एकीकरण 270 करोड़ रूपए है।
आधार विवरण को भूमि रिकॉर्ड से जोड़ना स्वैच्छिक आधार पर बनाया जाएगा। इस पहल से भूमि संबंधी धोखाधड़ी से बचना होता है जिससे भूमि के मामलों में पारदर्शिता आती है और स्वामित्व का हक़ बनता है।
इसके लाभ में सभी लेन-देन में विशिष्टता सुनिश्चित करना और भूमि के रिकॉर्ड हमेशा अपडेट रखना, सभी संपत्तियों के लेन-देन के बीच एक कड़ी स्थापित करना, एकल खिड़की के माध्यम से नागरिकों को भूमि रिकॉर्ड की सेवा देना, विभागों वित्तीय संस्थानों और अन्य सभी हित धारकों के बीच भूमि रिकॉर्ड डेटा को साझा करना और डेटा व एप्लिकेशन स्तर पर मानकीकरण विभागों बीच प्रभावी एकीकरण और अंतरसंक्रियता लेकर आना शामिल है।