प्राचीन शिल्पकला देखनी है तो कोणार्क का सूर्य मंदिर जरूर देखे
Ashish Urmaliya | The CEO Magazine
देश की ऐतिहासिक धरोहरों और सबसे चर्चित मंदिरों में से एक है, कोणार्क का रहस्यमयी सूर्य मंदिर। यह अद्भुत मंदिर अपनी अभेद वास्तुकला के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध। बेजोड़ कलाकृति के चलते इस मंदिर को यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल के रूप में शामिल किया जा चुका है। यह मंदिर उड़ीसा के पूर्वी समुद्र तट पर पुरी के पास स्थित है। यहां की कलाकृतियों, ऐसतिहासिक कहानियों व मान्यताओं से प्रोत्साहित होकर साल भर में यहां लाखों पर्यटक आते हैं।
क्या है ऐतिहासिक रहस्य?
कोणार्क मंदिर का इतिहास कभी भी इतिहासकारों के वश में नहीं रहा है। यह मंदिर कितना पुराना है इसका कोई ठोस रिकॉर्ड नहीं हैं। इसका ज़िक्र सिर्फ पुराणों में मिलता है। सूर्य देव के इस मंदिर की अलौकिकता और ऐश्वर्य का एहसास आप यहां आने के बाद ही कर सकते हैं. पुराणों के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण और जामवंती के पुत्र 'सांब' बहुत ही सुंदर थे। एक बार श्री कृष्ण ने उन्हें स्त्रियों के साथ आपत्तिजनक अवस्था में देख लिया और रोष में आकर कुष्ठ रोगी होने का श्राप दे दिया। श्रापित होते ही सांब भयभीत हो गये और क्षमा मांगते हुए पिता के चरणों में गिर पड़े, तब भगवान ने श्राप मुक्ति के लिए उन्हें कोणार्क जाकर सूर्य की आराधना करने का आदेश दिया। पिता के बताये अनुसार सांब ने कठिन तप किया, सूर्य देव प्रसन्न हुए और उन्हें श्राप मुक्ति के लिए चंद्रभागा नदी में स्नान करने को कहा। स्नान के दौरान सांब को एक कमल पत्र पर सूर्य देव की मूर्ति दिखाई दी। श्राप मुक्त होते ही उन्होंने ब्राह्मणों से उस मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करवाई। ऐसी मान्यता है कि सांब को यह मूर्ति रथ सप्तमी के दिन ही मिली थी। इसीलिए हर साल लोग यहां इस दिन सूर्या की पूजा करने आते। पुराणों में इस मूर्ति का उल्लेख 'कोणादित्य' के नाम से भी किया गया है।
कोणार्क सूर्य मंदिर की कल्पना एक रथ के रूप में की गई है। मंदिर के दो भागों में 12 जोड़े विशाल पहिये लगे हुए हैं और 7 शक्तिशाली घोड़े इसको खींच रहे हैं। सूर्योदय के समय मंदिर के सिखर के ठीक ऊपर नारंगी रंग का एक बड़ा सा गोला चारों ओर अपनी रौशनी बिखेरते हुए दिखाई पड़ता है। मंदिर के गर्भगृह में सूर्यदेव की अलौकिक पुरुषाकृति मूर्ति विराजमान है जो बहुत ही कम लोगों को देखने मिलती है। इसका शिखर स्तूप कोणाकार है और तीन तलों में विभक्त है। कहा जाता है कि, इसका निर्माण 1250 एडी के दौरान गंग वंश के नरेश नरसिंह देव (प्रथम) ने करवाया था।
इस मंदिर से जुड़ी और भी कई अलौकिक, महिमा मंडित कथाएं हैं जो आपको यहां जाने के बाद पता लगेंगी।
ये है मंदिर जाने का सबसे उत्तम समय :-
अगर आप भारत की प्राचीन धरोहरों, अद्यभुत, अकल्पनीय कलाकृतियों को देखने के लिए ललायित हैं व आपकी भगवान में श्रद्धा है तो आप कोणार्क जरूर जाएं। यहां जाने के लिए सबसे अच्छा समय नवंबर से मार्च महीने के बीच का होता है। देश के कौने- कौने से उपलब्ध फ्लाइट्स, ट्रेन्स के माध्यम से आप यहां पहुँच सकते हैं। इसके लिए आपको सबसे पहले भुवनेश्वर पहुंचना होगा फिर वहां से बस के द्वारा कोणार्क। यहां समुद्र तट से निकलने वाले सीपियों से बने सुंदर आभूषण पर्यटकों को बहुत आकर्षित करते हैं। यहां का प्राकृतिक वातावरण, पास में स्थित जगन्नाथपुरी मंदिर, चिल्का झील, भीतरकानिका नेशनल पार्क, उदयगिरि की गुफाएं और कई ऐतिहासिक स्थल आपके ट्रिप को और भी शानदार बना देते हैं।