भोपाल(Bhopal) से 254 कि.मी की दूरी पर स्थित टीकमगढ़(Tikamgarh district) मध्य प्रदेश(Madhya Pradesh) का एक मुख्य जिला है। पहले इस शहर का नाम "टेहरी(Tehri)" था अब जिसे पुरानी टेहरी के नाम से जाना जाता है। 1728 में ओरछा(orchha) के महाराज विक्रमजीत(Maharaj Vikramjit) ने ओरछा(orchha) के बदले अपनी राजधानी टेहरी जिला टीकमगढ़(Capital Tehri District Tikamgarh) को बना दिया। बुंदेलखंड(Bundelkhand) का हिस्सा टीकमगढ़(Tikamgarh) का नाम भगवान श्री कृष्ण के नाम टीकम से पड़ा। ओरछा राज्य को 1501 में रुद्र प्रताप द्वारा स्थापित किया गया था।
1948 में विलय के बाद ओरछा को विंध्य प्रदेश(Vindhya Pradesh) के आठ जिलों में से एक बना दिया गया। टीकमगढ़ में बहने वाली नदियों में धसान और जामनी शामिल है। यह शहर अपने वैभवशाली इतिहास(glorious history) के लिए जाना जाता है। टीकमगढ़ पूर्व(Tikamgarh East) और दक्षिण-पूर्व में मध्य प्रदेश(Madhya Pradesh) के छतरपुर जिले(CHHATARPUR District), उत्तर में निवाड़ी जिले(Niwari district) से और पश्चिम में उत्तर प्रदेश(Uttar Pradesh) के ललितपुर जिले(District Lalitpur) से घिरा हुआ है।
भारतीय संघ के हिस्से में विलय से पहले टीकमगढ़ ओरछा रियासत(ओरछा रियासत) का हिस्सा था। 1 नवंबर, 1956 को राज्यों के पुनर्गठन(restructuring) के बाद टीकमगढ़ को मध्य प्रदेश(Madhya Pradesh) का एक जिला बना दिया गया। ओरछा की स्थापना 1501 में रुद्र प्रताप सिंह(Rudra Pratap Singh) ने की थी और वही ओरछा के पहले महाराज भी थे। एक गाय को शेर से बचाने के प्रयास में उनकी मृत्यु हो गई।
टीकमगढ़(Tikamgarh) का राज मंदिर "मधुकर शाह(Madhukar Shah)" ने 1554-1591 में बनवाया था। मुग़ल सम्राट(Mughal Emperor) के शासक जहांगीर(Mughal Emperor) जब दिल्ली(Delhi) पर राज कर रहे थे तब टीकमगढ़(Tikamgarh) का शासन उनके सहयोगी वीर सिंह देव(Vir Singh Devi) ने संभाला था। 17वीं शताब्दी में राजा झुझर सिंह(Raja Jujhar Singh) ने मुग़ल सम्राट शाहजहाँ(Mughal emperor Shahjahan) के खिलाफ विद्रोह कर दिया और युद्ध के बाद 1639 से 1641 तक उन्होंने ओरछा पर कब्ज़ा कर लिया।
बुंदेला राज्य के ओरछा और दतिया ही था जो 18वीं शताब्दी में मराठा के अधीन नहीं था। टीमगढ़ जिसे पहले टिहरी के नाम जाना जाता था, ओरछा से 52 मिल दूर है और 1783 में ओरछा की राजधानी रह चूका है।
1874 टीमगढ़ के महाराज बने प्रताप सिंह(Pratap Singh) ने अपना पूरा जीवन राज्य के विकास में समर्पित कर दिया। 1950 में प्रताप सिंह के उत्तराधिकारी वीर सिंह(Vir Singh) ने अपने राज्य का भारत संघ में विलय कर उसे विंध्य प्रदेश(Vindhya Pradesh) राज्य का हिस्सा बना दिया। जिसको बाद में मध्य प्रदेश(Madhya Pradesh) का नाम दिया गया।
टीकमगढ़ में घूमने की बहुत सारी जगह है। इस रोचक क्षेत्र में आपको किले, मंदिर, झील आदि देखने को मिलते है। यहाँ बहुत से किले और इमारतें है जो ओरछा के इतिहास को दर्शाती है और वहाँ के ऐतिहासिक महत्व को बताती है।
1) चतुर्भुज मंदिर:- चतुर्भुज मंदिर(Chaturbhuj Temple) कई चीज़ों का मिला जुला रूप है। इस मंदिर में महल और किले की झलक भी देखने को मिलती है जिसके कारन इसे मंदिर, महल और किले का खूबसूरत मिश्रण भी कहा जाता है। यह मंदिर इतना खूबसूरत है, इसकी बनावट इतनी लुभावनी है की पर्यटकों को यह अपनी तरफ खींचती है।
मंदिर के ऊपरी हिस्से में कमल के साथ-साथ कई तरीके की सुंदर-सुंदर नक्काशी की गई है। इस मंदिर को श्री राम और नंदलाल को समर्पित किया गया है। इस मंदिर के द्वार सुबह 5 बजे से 12 बजे तक और शाम 4 से रात 9 तक खुले रहते है। चतुर्भुज मंदिर की दूर-दूर तक बड़ी मान्यता है और लोग यहाँ नंदलाल और राम जी के दर्शन के लिए आते है।
2) ओरछा किला:- 16वीं सदी में राजा रुद्र प्रताप सिंह(Rudra Pratap Singh) द्वारा निर्मित ओरछा किला बेतवा नदी पर बना है जो प्राचीन भारत का समृद्ध और गौरवशाली इतिहास दिखता है। ओरछा में बढ़ते पर्यटन को देखते हुए हर साल यहाँ भव्य महोत्सव का आयोजन किया जाता है। ओरछा का किला अपने आप में ही नक्काशी और इतिहास का बेहतरीन प्रदर्शन है। इस किले में घूमने का समय सुबह 11 बजे से शाम 6 बजे तक का होता है।
3) राजा राम मंदिर:- भगवान राम को समर्पित राजा राम मंदिर(Ram Raja Temple) टीकमगढ़ के मशहूर मंदिरों में से एक है। यह मंदिर दिखने में जितना खूबसूरत है इसके बनने के पीछे का इतिहास उतना ही रोचक है। इस मंदिर को राजा मधुकर शाह ने बनवाया था। वहाँ के लोगों का कहना है भगवान राम राजा के सपने आये थे और उन्हें मंदिर बनाने का कहा था।
श्री राम की बात का मान रखते हुए राजा ने तुरंत भव्य मंदिर का निर्माण शुरू करवा दिया। मंदिर बनने से पहले भगवान राम की प्रतिमा राजा ने अपने महल में रखवा ली और मंदिर तैयार होने के बाद जब मूर्ति की स्थापना मंदिर में करवाने की बात आई तो मूर्ति को हिलाना बड़े-बड़े पहलवानो के लिए भी मुश्किल हो गया। तब राजा को भगवान राम की वाणी याद आई जो उन्हें सपने में कही थी की मूर्ति वही स्थापित हो जाएगी जहाँ उसे रखा जायेगा।
जिसके बाद राजा ने अपना महल दूसरी जगह बनवा कर इस जगह हो राजा राम मंदिर का नाम दे दिया। मंदिर के द्वार सुबह 8 बजे से 12 बजे तक और फिर शाम 7 बजे से 9 बजे तक खुले रहते है।
4) जहांगीर महल:- जहांगीर महल(Jahangir Mahal) का निर्माण 17वीं शताब्दी में बुंदेला के राजा बीर सिंह देव(Vir Singh Dev) ने करवाया था। दरअसल यह महल बुंदेला के राजा बीर सिंह देव और मुग़ल शासक औरंगज़ेब(Aurangzeb) के बीच हुए समझौते का प्रतीक है। इस महल की खास वास्तुकला इसे लोगों के बीच मशहूर करती है। दूर-दूर से यहाँ की नक्काशी देखने लोग आया करता है।
कहा जाता है यह महल शाम के वक्त सबसे ज़्यादा खूबसूरत लगता है और उस दृश्य को देखने के लिए लोग शाम का इंतज़ार करते है। उस समय जहांगीर महल(Jahangir Mahal) की सुंदरता देखने लायक होती है। लेकिन पर्यटन के लिए यह जगह सुबह 11 बजे से शाम 6 बजे तक खुली रहती है।
टीकमगढ़ जाना बहुत आसान है क्योंकि यह जगह देश के बाकी शहरों से अच्छी तरह जुडी हुई है। इस लिए यहाँ बिना किसी परेशानी और दुविधा के पहुँचा जा सकता है।
खजुराहो एयरपोर्ट(Khajuraho Airport) से टीकमगढ़ की दूरी बस 114 कि.मी है। क्योंकि टीकमगढ़ में कोई एयरपोर्ट नहीं है इस लिए खजुराहो एयरपोर्ट आ कर निजी साधन या टैक्सी से टीकमगढ़ आया जा सकता है।
अगर ट्रेन से सफर करने की बात की जाये तो भोपाल(Bhopal) पहुँचने के बाद ललितपुर जंक्शन(Lalitpur Junction) के लिए ट्रेन पकड़ी होगी फिर वहाँ से टैक्सी या बस से टीकमगढ़ का सफर तय कर पहुँचा जा सकता है। ललितपुर और टीकमगढ़ की दूरी मात्र 50 कि.मी की है।
टीकमगढ़ की सबसे अच्छी बात यह है कि सड़क के माध्यम से इस जगह का जुड़ाव देश के हर शहर से अच्छी तरह से है। चाहे राष्ट्रीय हाईवे(national highway) हो या स्टेट हाईवे दोनों ही टीकमगढ़ से हो कर गुज़रते है। इस लिए बस या निजी वाहन से यात्रा करना बहुत आसान है।