गालव ऋषि की तपोभूमि के रूप में जाने जाना वाला शहर, ग्वालियर. 
पर्यटन

गालव ऋषि की तपोभूमि के रूप में जाने जाना वाला शहर, ग्वालियर

Jaya Tanwar

गालव ऋषि की तपोभूमि के रूप में जाने जाना वाला शहर, ग्वालियर

तोमर कछवाहा(Tomar Kachwaha) की राजधानी ग्वालियर(Gwalior) मध्य प्रदेश(Madhya Pradesh) के उत्तर में बसा एक ऐतिहासिक नगर है। शासक सूरज सेन पाल(Suraj Sen Pal) ने प्राचीन चिन्ह स्मारकों, किलों और महलों का निर्माण करवाया जिसे देखने लोग दूर-दूर से आते है। इस शहर को गालव ऋषि(Galav Rishi) की तपोभूमि के रूप में भी जाना जाता है। ग्वालियर(Gwalior) शहर के नाम का इतिहास बड़ा दिलचस्प है।

राजा सूरजसेन पाल कछवाह एक बार बहुत बीमार हो गए और मृत्यु शैया पर थे, उस वक्त संत ग्वालियर ने उनकी सेहत ठीक कर उन्हें जीवनदान दिया। उनके सम्मान में इस शहर की नींव पड़ी और नाम दिया गया ग्वालियर। ग्वालियर का प्राचीन नाम गोपराष्ट्र है और इसका इतिहास बहुत प्राचीन है।

ग्वालियर और उसके आस-पास के क्षेत्र महाभारत काल में गोपराष्ट्र के नाम से मशहूर थे। ऐसे ही ग्वालियर के कई नाम थे जैसे गौरवशाली जनपद(glorious district), गोप पर्वत(gop mountain), गोपगिरिन्द्र(Gopagirindra) आदि।

इतिहास

1948 से 1956 तक मध्य भारत की राजधानी रह चूका ग्वालियर ऐतिहासिक रूप से बड़ा महत्वपूर्ण है। मध्य प्रदेश(Madhya Pradesh) में मौजूद ग्वालियर किले(Gwalior Fort) का निर्माण 8वीं शताब्दी में करवाया गया था। तो ग्वालियर का सबसे पुराना शिलालेख हूण शासक मिहिर(Inscription of Hun ruler Mihir) कुल की देन है। अगर ग्वालियर(Gwalior) पर शासन करने वाले प्रशासकों की बात की जाए तो उनकी गिनती भी लम्बी है।

1231 में इल्तुतमिश(Iltutmish) ने 11 महीने की लम्बी जंग के बाद ग्वालियर पर कब्ज़ा कर लिया और 13वीं शताब्दी तक मुस्लिम शासन के अधीन रखा। 1375 में राजा वीर सिंह(King Veer Singh) को ग्वालियर का शासक बनाया गया और उन्होंने तोमर वंश की स्थापना की। उस तोमर वंश के शासन के दौरान ही ग्वालियर किले में जैन मूर्तियां बनाई गई थी।

राजा मान सिंह तोमर(Man Singh Tomar) ने मैन मंदिर पैलेस(Man Mandir palace) बनवाया जिसे उनके सपनों का महल भी कहते है। पर्यटकों के लिए यह महल आकर्षण का केंद्र बन गया। बाबर ने "मैन मंदिर पैलेस" के बारे में कहा था की यह "भारत के किलों के हार में मोती" की तरह है और "हवा भी इसके मस्तक को नहीं छू सकती।" बाद में सिंधियों ने 1730 में ग्वालियर पर कब्ज़ा कर लिया।

फिर 1740 में गोहद(Gohad) के जाट राजा भीम सिंह राणा(Raja Bhim Singh Rana) ने ग्वालियर को जीत लिया और कई साल तक वहाँ शासन किया। पर सिंधियों ने फिर से ग्वालियर अपने कब्ज़े में कर लिया। 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ग्वालियर ने अंग्रेज़ी हुकूमत का साथ दिया। झाँसी(Jhansi) अँग्रेज़ों से हारने के बाद लक्ष्मीबाई(Laxmi Bai) ने ग्वालियर पर हमला कर उसे अपने अधीन कर लिया।

लेकिन अंग्रेजी हुकूमत ने ग्वालियर पर हमला कर दिया और 1858 को रानी लक्ष्मीबाई का निधन हो गया। 18वीं और 19वीं शताब्दी में ग्वालियर पर ग्वालियर राज्य शासक का शासन था। उसके बाद 19वीं और 20वीं शताब्दी में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन(British colonial rule) और फिर आज़ादी के बाद राजनेताओं की सरकार रही।

घूमने की जगह

राजा सूरजसेन(Raja Suraj Sen) द्वारा निर्मित ग्वालियर शहर अपनी खूबसूरती और ऐतिहासिक महत्वता के लिए हर जगह मशहूर है। यहाँ के स्मारक, महल और मंदिरों की सुंदरता की जितनी तारीफ की जाए काम है। यहाँ के मस्जिद, रॉक मंदिर और मूर्तियों की बनावट से कारीगरों की शानदार कला का प्रदर्शन होता है।

1) ग्वालियर का किला:- ग्वालियर के किले का निर्माण सन 727 में सूर्यसेन(Suraj Sen) ने करवाया था। मध्य प्रदेश(Madhya Pradesh) के ग्वालियर के पास विशाल पहाड़ की चोटी पर स्थित ग्वालियर का किला 3 कि.मी. के क्षेत्र में फैला है। ग्वालियर का यह किला हर नुक्कड़ से नज़र आ जाता है। इस किले पर कई राजपूत(Rajput) राजाओं ने राज किया है।

किले की स्थापना के बाद लगभग 989 सालों तक इस पर पाल वंश ने राज किया उसके बाद प्रतिहार वंश ने राज किया। कई राजा-रजवाड़ों ने इस किले पर अपना राज स्थापित किया। किले के अंदर पानी के टैंक, महल और मंदिर है जिसमें मान मंदिर(Maan Mandir), जहांगीर महल(Jahangir Mahal), करण महल(Karan Mahal) और शाहजहां महल(Shahjahan Mahal) शामिल है। यह किला सप्ताह के सभी दिन सुबह 8 बजे से शाम 5 बजे तक पर्यटकों के लिए खुला रहता है।

अगर प्रवेश फीस की बात की जाये तो वह 75 रुपए प्रति व्यक्ति है लेकिन बच्चों के लिए प्रवेश फ्री है। किले तक जाने के 2 रास्ते है, एक ग्वालियर गेट(Gwalior Gate) जहाँ से पैदल ही जाया जा सकता है और दूसरा रास्ता है उरवाई गेट(Urwai Gate) जहाँ गाड़ी जाने की अनुमति है।

2) जय विलास पैलेस:- ग्वालियर के जय विलास पैलेस(Jai Vilas Palace) में शाहजहाँ (Shahjahan) और औरंगज़ेब(Aurangzeb) के युग से लेकर लक्ष्मीबाई(Laxmi Bai) के शासन काल के स्वतंत्रता आंदोलन तक के हथियार रखे है। ग्वालियर के महाराज रह चुके जयजी राव सिंधिया(Jaiji Rao Scindia) ने इस महल जैसा स्मारक का निर्माण करवाया।

1874 में वेल्स के तत्कालीन राजकुमार किंग एडवर्ड(prince king edward) के भव्य स्वागत के लिए इस महल का निर्माण करवाया गया। 75 एकड़ में फैला यह महल शाही वास्तुकला को दर्शाता है। इस महल को आधुनिक समय में संरक्षित, सदियों पुरानी भारतीय संस्कृति और भव्यता का प्रतीक कहा जाता है।

महल में 30 कमरे है और एक आर्ट गैलरी(art gallery) है जिसमें 5000 से भी ज़्यादा किताबें रखी हैं। महल में घूमने का समय सुबह 10 बजे से शाम 4:30 तक का होता है लेकिन यह जगह बुधवार को बंद रहती है। यहाँ घूमने के लिए 100 रुपए का एंट्री टिकट खरीदना होता है।

3) मान मंदिर पैलेस:- ग्वालियर के मशहूर किले के उत्तर-पूर्वी छोर पर स्थित मान मंदिर महल(Man Mandir palace) का निर्माण 1486 से 1516 के बीच हुआ। तोमर शासक मान सिंह तोमर(Tomar ruler Man Singh Tomar) ने इस महल का निर्माण करवाया था।

पर महल की हालत अब इतनी अच्छी नहीं है हालांकि महल के अवशेष अभी भी उस समय की सुंदर नक्काशी और कलाकारों की कला को दर्शाते हैं। महल का जौहर तालाब सुसाइड पॉइंट(Johar Talab Suicide Point) के रूप में मशहूर है जहाँ राजपूती औरतें अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए आत्महत्या कर लेती थीं। यह जगह औरंगज़ेब(Aurangzeb) के कारन भी मशहूर है।

यहाँ औरंगज़ेब(Aurangzeb) ने अपने भाई मुराद(Murad) को बंदी बनाया था और धीरे-धीरे अफीम(opium) के इस्तेमाल से ज़हर देकर मार दिया था। यह जगह जहांगीर महल (Jahangir Mahal), शाहजहां महल(Shahjahan Mahal) और गुजरी महल (Gujjari Mahal) से घिरा हुआ है। सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक इस महल में घुमा जा सकता है और इस महल में टिकट फ्री है।

4) तानसेन का मकबरा:- भारत के महान संगीतकार और अकबर दरबार(Akbar Darbar) के नौ रत्नों(nine gems) में से एक तानसेन(Tansen) का यह मकबरा उनके सम्मान में बनवाया गया था। कहा जाता है तानसेन(Tansen) अपने संगीत से जादू करते थे जब वह गाते तब बादल भी बरसने लगते तो कभी जानवर उन्हें मंत्रमुग्ध हो कर सुनने लगते।

तानसेन को उनके गुरु मोहम्मद गौस(Guru Mohammad Ghaus) के साथ दफनाया गया था जिन्होंने तानसेन को शास्त्रीय संगीत की शिक्षा दी थी और उस परिसर को तानसेन स्मारक के रूप में जाना जाता है। यह स्मारक सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे के बीच खुलता है।

कैसे जाए और कहा रुके??

ग्वालियर पहुँचना के लिए ट्रेन, फ्लाइट और सड़क का मार्ग बहुत आसान है।

ग्वालियर का हवाई अड्डा(Airport) शहर के केंद्र से 8 कि.मी. की दूरी पर है जहाँ देश के बड़े-बड़े शहरों से सीधी या कनेक्टेट फ्लाइट(connect flight) आती हैं। हवाई अड्डे से निजी साधन के माध्यम से शहर में घुमा जा सकता है।

अगर रेल मार्ग(railroad track) की बात की जाए तो ग्वालियर रेलवे स्टेशन(Gwalior Junction Railway Station) देश के अलग और बड़े शहरों से जुड़ा हुआ है।

सड़क से ग्वालियर जाने की बात की जाए तो वहाँ तक बस और निजी साधनों से जाया जा सकता है।

यहाँ लो-बजट से हाई-बजट तक के कई होटल मौजूद है जिसे अपनी सुविधा के अनुसार बुक कर सकते है।

झांसी के अस्पताल में भीषण आग, नवजात शिशुओं की दर्दनाक मौत से मातम का माहौल

रतन टाटा: एक महानायक की यात्रा (1937 - 2024)

महालक्ष्मी व्रत कथा

सफला एकादशी (पौष कृष्ण एकादशी)

मोक्षदा एकादशी (मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी)