Politics

राष्ट्रपति शाशन से जुड़ी वह बातें जो शायद आप नहीं जानते!

Lubna

Ashish Urmaliya ||Pratinidhi Manthan

महाराष्ट्रमें राष्ट्रपति शासन लागू हो चुका है। जिस किसी भी राज्य में कोई भी पार्टी सरकार बनानेमें असमर्थ होती है अक्सर वहां राष्ट्रपति शासन लग जाता है। और आजकल टीवी पर भी इसकीचर्चा जोरों पर है, तो आज हम यहां समझने और समझाने की कोशिश करेंगे कि आखिर राष्ट्रपतिशासन होता क्या है, इसके मायने क्या हैं। 

राष्ट्रपतिशासन का मतलब, किसी प्रदेश का नियंत्रण देश के राष्ट्रपति के पास चले जाना। लेकिन प्रशासनिकदृष्टि से देखा जाये, तो इसके लिए केंद्र सरकार राज्य के राज्यपाल को सभी कार्यकारीअधिकार प्रदान करती है। भारत के संविधान में भी राष्ट्रपति शासन से जुड़े प्रावधान दिएगए हैं, जिनका वर्णन अनुच्छेद 352, 356 और 365 में मिलता है।

संविधानके अनुच्छेद 352 के अनुसार, किसी भी राज्य या देश में आर्थिक आपातकाल की स्थिति मेंराष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है। अनुच्छेद 356 के अनुसार, देश के राष्ट्रपति किसीभी राज्य द्वारा संविधान की अवहेलना की स्थिति में वहां राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं।मतलब, यदि राष्ट्रपति इस बात से संतुष्ट नहीं है, कि कोई भी राज्य संविधान के मुताबिककाम कर रहा है तो वहां राष्ट्रपति शासन लग सकता है। वहीं अनुच्छेद 365 के अनुसार, अगरकोई राज्य सरकार केंद्र सरकार द्वारा दिए गए संवैधानिक निर्देशों का पालन नहीं करतीहै, तो इन हालातों में राष्ट्रपति उस राज्य में अपना शासन लागू कर सकते हैं।

और किन अन्य परिस्थितियों मेंकिसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है, आइये जानते हैं!

–अगर चुनाव के बाद राज्य की किसी भी राजनीतिक पार्टी को बहुमत हासिल न हुआ हो और वहांगठबंधन की भी सरकार बनने की स्थिति दिखाई न दे रही हो।

–किसी पार्टी को बहुमत मिल भी गया हो पर वह सरकार बनाने से इनकार कर दे और कोई अन्यपार्टी सरकार बना पाने की स्थिति में न हो।

–जब राज्य सरकार केंद्र सरकार के संवैधानिक निर्देशों का पालन न कर रही हो।

–कोई राज्य सरकार जानबूझ कर राज्य की आंतरिक अशांति को बढ़ावा दे रही हो।

–  सरकार अपने संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन न कररही हो।

इनसभी परिस्थितियों में राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने की संभावनाएं प्रबल हो जातीहैं। अब यहां जानने वाली ये बात है, कि राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद क्या प्रक्रियाहोती है? तो आपको बता दें,

किसीभी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने के दो महीने के अंदर संसद के दोनों सदनों द्वाराअनुमोदन(Approval) होना ज़रूरी होता है। सदनों का अनुमोदन होने के बाद ही राष्ट्रपतिशासन अगले 6 महीने तक के लिए चल सकता है। सामान्य जानकारी के लिए बता दें, हमारे देशऔर राज्यों में अब तक करीब 125 बार राष्ट्रपति शासन लगाया जा चुका है। भारत में सबसेपहला राष्ट्रपति शासन साल 1951 में पंजाब राज्य में लागू हुआ था।

राष्ट्रपति शासन लगने के बादराज्य में क्या बदलाव आते हैं?

–राष्ट्रपति, तत्कालीन मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाली मंत्रीपरिषद् को भंग कर देते हैं।

–राज्य सरकार के सभी कार्य राष्ट्रपति के पास चले जाते हैं और इन कार्यों को निपटानेके लिए राज्यपाल और अन्य कार्यकारी अधिकारियों को शक्तियां प्रदान कर दी जाती हैं।

–राष्ट्रपति शासन में राष्ट्रपति, राज्यपाल व राज्य सचिव मिलकर किसी सलाहकार की नियुक्तिकरते हैं, जो राज्य सरकार चलाने में मुख्य भूमिका निभाता है।

–अगर राष्ट्रपति चाहें तो राज्य के नियंत्रण की जिम्मेदारी केंद्र सरकार को भी दे सकतेहैं।

–राष्ट्रपति शासन में देश की संसद राज्य के विधेयक और बजट प्रस्ताव को पारित कर सकतीहै।

–शासन में देश की संसद को यह अधिकार भी मिल जाता है कि वह राष्ट्रपति व उसके द्वारानामित अधिकारी को राज्य का कानून बदलने का अधिकार दे सकती है।

–जब संसद सत्र न चल रहा हो तब राष्ट्रपति जरूरत के अनुसार कोई भी अध्यादेश जारी कर सकताहै।

अब डिटेल में चलते हैं-

देशमें राष्ट्रपति तीन धाराओं के तहत आपातकाल की घोषणा करता है। देश में आंतरिक युद्धया विदेशी आक्रमण की स्थिति में धारा 352 के तहत राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया जा सकताहै और धारा 360 के तहत आर्थिक आपातकाल लगाया जा सकता है। आपातकाल की स्थिति में राष्ट्रपतिशासन लगता है।

राष्ट्रपतिशासन देश में लागू हो या फिर किसी राज्य में इसकी अवधी 6 महीने या फिर एक साल की होतीहै। यदि एक साल पूरा होने के बाद राष्ट्रपति शासन को और ज्यादा बढ़ाने की जरूरत हो तोइसके लिए कैबिनेट को चुनाव आयोग की अनुमति लेनी होती है। लेकिन हां चुनाव आयोग की अनुमतिके बाद भी राष्ट्रपति शासन को 3 साल से ज्यादा समय तक लागू नहीं किया जा सकता। इसकेसाथ ही राष्ट्रपति शासन के दौरान भी राज्यपाल राजनीतिक पार्टियों को बहुमत साबित करनेका न्योता दे सकता है।

विधानसभाभंग हो जाने पर राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो जाता है लेकिन विधानसभा भंग किनपरिस्थितियों में होती है? आइये जानते हैं-

–जब राज्य में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता या फिर वे मिल-जुलकर भी सरकार नहींबना पाते ऐसी स्थिति में राज्यपाल विधानसभा को भंग कर देता है।

–संविधान के अनुच्छेद 356 के अनुसार (जिसकी संछिप्त बातचीत हम ऊपर भी कर चुके हैं),अगर कोई राज्य सरकार केंद्र सरकार द्वारा दिए गए निर्देशों के अनुपालन में अपनी कार्यकारीशक्तियों का प्रयोग करने में असफल होती है, तो उस राज्य का राज्यपाल एक रिपोर्ट तैयारकरके राष्ट्रपति को भेज सकता है। फिर राष्ट्रपति केंद्रीय मंत्रिमंडल से परामर्श करकेविधानसभा को भंग कर सकता है।

–अगर किसी राज्य में गठबंधन की सरकार चल रही है और बीच में गठबंधन टूट जाता है और कोईअन्य पार्टी सरकार बनाने का दावा पेश नहीं कर पाती, तो ऐसी स्थिति में राज्यपाल दोबाराचुनाव कराने के उद्देश्य से विधानसभा को भंग कर सकता है।

–यदि किन्हीं अपरिहार्य कारणों जैसे- बहरी आक्रमण की स्थिति, राज्य का विभाजन अदि केचलते विधानसभा चुनाव स्थगित कर दिए जाते हैं तो ऐसी स्थिति में राज्यपाल विधान सभाको भंग कर सकता है।

आपकोबता दें, राज्यपाल के पास किसी भी कारण को ले कर राज्य विधानसभा के विघटन(तोड़ने) कीशक्ति होती है लेकिन इसके लिए उन्हें दो महीने के भीतर दोनों सदनों की मंजूरी लेनाजरूरी होता है। ऐसी स्थिति में अगर कोई करना चाहे तो विधानसभा भंग के खिलाफ सुप्रीमकोर्ट का दरवाजा भी खटखटा सकता है। अपील के बाद कोर्ट अपनी जाँच में यह पता लगाएगाकि विधानसभा को किस आधार पर भांग किया जा रहा है। अगर कारण प्रासंगिक न हुआ व झूठाहुआ तो कोर्ट विधानसभा भंग होने पर रोक भी लगा सकता है। इसका मतलब यह हुआ, कि विधानसभाभंग करने में सिर्फ राष्ट्रपति का फैसला अंतिम नहीं माना जाता। इस फैसले को कोर्ट मेंभी चुनौती दी जा सकती है।

इतिहास की घटना-   साल 1994 से पहले विधानसभा को भंग करने की नियमावलीव तरीकों का जमकर विरोध हुआ, आरोप लगाए गए कि केंद्र सरकार अपने निजी फायदे के लिएअन्य दलों के शासन वाले राज्यों की विधान सभाओं को गैर वाजिब कारणों से हटा रही है।इन्हीं आरोपों के चलते सुप्रीम कोर्ट ने इस वर्ष उन वाजिब करने की व्याख्या की, स्पष्टकिया जिनके विनाह पर राज्य विधानसभा को भंग किया जा सकता है।

राष्ट्रपति शासन हटाया कैसे जाताहै?

विधानसभाबर्खास्त(निलंबित) होने के बाद राष्ट्रपति शासन को कभी भी हटाया जा सकता है और विधानसभाअपनी मूल स्थिति में लौट सकती है। मतलब, एक महीने या दो महीने बाद, जब भी कभी नई सरकारबनने की स्थिति बने, तो राष्ट्रपति शासन को हटाया जा सकता है।

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