1857 की क्रांति में हिस्सा लेने वाले राजा नाहर सिंह चौधरी, चरण सिंह के पूर्वज थे। पूर्वजों के नाम के आगे भले ही राजा लगा हो लेकिन चौधरी चरण सिंह का जन्म फूस के छप्पर वाली मढ़ैया में हुआ था। उत्तर प्रदेश के जिला गाजियाबाद की तब की तहसील हापुड़ में बाबूगढ़ छावनी के निकट एक गांव है 'नूरपुर'।इसी छोटे से गांव में 23 दिसंबर,1902 को चौधरी चरण सिंह का जन्म एक जाट परिवार में हुआ था। पिता का नाम चौधरी मीर सिंह था। चरण सिंह को विरासत के रूप में सिर्फ उनके पिता के नैतिक मूल्य मिले थे।
चरण सिंह जब मात्र 6 वर्ष के थे तब उनके पिता चौधरी मीर सिंह सपरिवार नूरपुर गांव से भूपगढी गांव आकर बस गये थे। यही चरण सिंह के जीवन का टर्निंग पॉइंट था। भूपगढी गांव के परिवेश में ही उनके कोमल हृदय में गांव-गरीब-किसान के शोषण के खिलाफ संघर्ष का बीजारोपण हुआ। उस दौर में उनके आस-पास के किसानों के हालात इतने बदतर होते थे कि देख कर ही किसी का भी दिल भर जाए। गरीबी के बावजूद उन्होंने पढ़ाई को पहला दर्जा दिया। शुरुआती शिक्षा गांव से ही प्राप्त की फिर 1923 में विज्ञान से स्नातक की पढाई पूरी कर आगरा विश्वविधयालय में कानून की पढाई में प्रवेश ले लिया। कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद कर्तव्यनिष्ठ चरण सिंह ने गाजियाबाद में ही साल 1928 में वकालत करना प्रारम्भ कर दिया।
केस उसी का लेते थे जो बेगुनाह हो-
वकालत जैसे कमाऊ/व्यावसायिक पेशे में भी श्री चरण सिंह उसी मुवक्किल का केस लेते थे जिसका पक्ष न्यायपूर्ण होता था। इसी दौरान उन्होंने समाज के बीच व्याप्त समस्याओं को गहराई से समझा। किसानों के मुकदमों के फैसले करवाए। किसानों के आपस में लड़ने के बजाय आपसी बातचीत द्वारा मुक़दमे सुलझाने की कोशिश शुरू की और काफी हद तक सफल भी रहे।
राजनीतिक जीवन का प्रारंभ-
साल 1929, ये वो दौर था जब पूरा देश गांधी जी के पीछे चलता था, उनका ही कहा माना जाता था। साल 1929 में जब लाहौर में कांग्रेस ने पूर्ण स्वराज्य का उद्घोष किया। नेहरू जी बड़े नेता बन कर उभरे, इससे प्रभावित होकर युवा चरण सिंह ने गाजियाबाद में ही कांग्रेस कमिटी का गठन कर दिया। फिर 1930 में जब नमक कानून तोड़ने के लिए महात्मा गांधी द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन का आवाहन किया गया, दांडी मार्च किया गया तब चरण सिंह गांधी जी के समर्थन में गाजियाबाद की सीमा पर बहने वाली हिण्डन नदी पर नमक बनाने पहुंच गए। इसके चलते उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें 6 महीने की जेल की सजा काटनी पड़ी। जेल से लौटने के बाद चौधरी चरण सिंह फुल मोड में स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित हो गए।
1937 में विधायक बने:
1937 में यूपी विधानसभा चुनाव हुए। चौधरी चरण सिंह छपरौली विधानसभा सीट से सदस्य के रूप में चुने गये। सबसे पहले उन्होंने विधानसभा में किसानों की फसल से संबंधित.एक बिल पेश किया। उस वक्त किसानों के हित में यह एक क्रांतिकारी बिल था क्योंकि ब्रिटिश राज में सबसे ज्यादा चोट किसानों को ही पहुंचाई जा रही थी। अंग्रेजी सरकार मुगलिया टैक्स सिस्टम को हटाकर बेहद क्रूर सिस्टम लाई थी। इसी सिस्टम की वजह से भारत में गरीबी अपने चरम पर पहुंच गई थी। देश का किसान तो अपनी उम्मीदें ही छोड़ बैठा था लेकिन 1937 की कांग्रेस सरकार ने किसानों में अप्रत्याशित रूप से एक नई जान फूंक दी। यहीं से कांग्रेस के भविष्य का ग्राउंड भी तैयार हुआ।
-चौधरी चरण सिंह ने साल 1939 में कर्जा माफी विधेयक पास करवाकर किसानों के खेतों की नीलामी रुकवाई। इसी वर्ष उनके द्वारा किसान के बच्चों को सरकारी नौकरियों में 50 फीसदी आरक्षण दिलाने की भी कोशिश की गई लेकिन कोशिश नाकाम रही। 1939 में ही चरण सिंह ने किसानों को टैक्स बढ़ोत्तरी और जमीन बेदखली से मुक्ति दिलाने के लिए जमीन उपयोग नामक बिल तैयार किया।
आज़ादी के लिए संघर्ष लगातार जारी रहा...
1940 में कांग्रेस द्वारा व्यक्तिगत सत्याग्रह का आवाहन किया गया जिसमें चरण सिंह ने भी बढ़ चढ़कर अपनी भागीदारी निभाई। इसी के चलते उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया फिर अक्टूबर 1941 में रिहा कर दिए गए। 1942 में गांधी जी द्वारा करो या मारो का आवाहन किया गया. पूरा भारत अंग्रेज़ो भारत छोड़ो के नारे से गूंज उठा। अगस्त क्रांति के दौरान 9 अगस्त 1942 में देश की आज़ादी को अपने प्राणों से भी ऊपर रखने वाले चौधरी चरण सिंह अंडरग्राउंड हो गए। भूमिगत हो कर उन्होंने गाजियाबाद, हापुड़, मेरठ, मवाना, सरथना, बुलन्दशहर के कई गावों में एक गुप्त क्रांतिकारी संगठन तैयार किया। पुलिस के चरण सिंह को देखते ही गोली मारने के आदेश थे, इसके बावजूद भी चरण सिंह हर जगह से सभा कर के निकल जाते और ब्रितानिया हुकूमत को बार-बार चुनौती देते। कई दिनों की मसक्कत के बाद आख़िरकार पुलिस ने चरण सिंह को गिरफ्तार कर लिया। उन्हें राजबंदी के रूप में डेढ़ वर्ष तक कैद में रखा गया। इसी दौरान उन्होंने 'शिष्टाचार' नामक दो डायरी की एक पुस्तक लिखी। यह पुस्तक भारतीय संस्कृति और समाज के शिष्टाचार के नियमों का एक बहुमूल्य दस्तावेज है जिसे हर भारतीय को पढ़ना चाहिए।
1937 के बाद 1946, 1952, 1962 एवं 1967 में चौधरी चरण सिंह ने विधानसभा में अपने निर्वाचन क्षेत्र छपरौली, उत्तर प्रदेश का प्रतिनिधित्व किया। पं. गोविंद बल्लभ पंत की सरकार में साल 1946 में उन्हें संसदीय सचिव बनाया गया। इसके अलावा उन्होंने न्याय, राजस्व, सूचना, चिकित्सा एवं लोक स्वास्थ्य इत्यादि विभागों का कार्यभार भी संभाला। जून 1951 में वे राज्य के कैबिनेट मंत्री बने, सरकार द्वारा उन्हें न्याय तथा सूचना विभागों का प्रभार सौंपा गया। 1952 में डॉ. सम्पूर्णानन्द के नेतृत्व वाली सरकार बनी जिसमें उन्हें राजस्व एवं कृषि मंत्री बनाया गया। अप्रैल, 1959 में उन्होंने राजस्व एवं परिवहन मंत्री पद व विधानसभा सदस्य पद से इस्तीफा दे दिया।
1960 में श्री सी.बी. गुप्ता के नेतृत्व वाली सरकार में वे गृह एवं कृषि मंत्री बने। 1962-63 में श्रीमती सुचेता कृपलानी के नेतृत्व वाली सरकार में उन्हें कृषि एवं वन मंत्री का कार्यभार सौंपा गया। 1965 में उन्होंने कृषि मंत्रालय छोड़ दिया फिर 1966 में स्थानीय स्वशासन विभाग का कार्यभार संभाला।
फिर आया साल 1967... मुख्यमंत्री बने
देश को स्वतन्त्रता मिलने के साथ ही वे राम मनोहर लोहिया के ग्रामीण सुधार आन्दोलन सक्रिय सदस्य बन गए थे। नेहरू जी की विचारधारा से मेल न खाने के चलते 1967 में चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस पार्टी को त्याग दिया। राम मनोहर लोहिया का हाथ इनके ऊपर था ही। इन्होंने 'भारतीय क्रांति दल' नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली। 1967 में विधानसभा चुनाव हुए। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को पहली बार हार का सामना पड़ा और चौधरी चरण सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। 17 अप्रैल 1968 को उन्होंने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। फरवरी, 1970 में कांग्रेस विभाजन के बाद वे दूसरी बार कांग्रेस पार्टी के समर्थन के साथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। हालांकि 8 महीने बाद, 2 अक्टूबर 1970 को उत्तर प्रदेश में 18 दिन के लिए राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था।
उत्तर प्रदेश सरकार में विभिन्न पदों पर रहते हुए श्री चरण सिंह ने राज्य की सेवा की। इसी के चलते उन्हें देशभर में ख्याति प्राप्त हुई, उनकी छवि एक ऐसे कड़क नेता के रूप में बनी जो भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार और प्रशासन की अक्षमता को बिलकुल भी बर्दाश्त नहीं करते थे। उनकी पहल का ही परिणाम था कि उत्तर प्रदेश में मंत्रियों के वेतन एवं उन्हें मिलने वाले अन्य लाभों को काफी कम कर दिया गया था। व्यवहारवादी एवं प्रतिभाशाली चौधरी चरण सिंह अपने दृढ़ विश्वास और वाक्पटुता के लिए जाने जाते थे, हैं और रहेंगे।
उत्तरप्रदेश में ‘जो जमीन को जोते-बोये वो जमीन का मालिक है’ का क्रियान्वयन करने वाले चौधरी चरण सिंह को यूपी में भूमि सुधार का पूरा श्रेय जाता है। कृषि मंत्री रहते हुए उतर प्रदेश में जोत अधिनियम, 1960 को लाने में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका थी। इस अधिनियम का मुख्य उद्देश्य जमीन रखने की अधिकतम सीमा को कम करने का था ताकि राज्यभर के किसानों के लिए इसे एक समान बनाया जा सके।
देश के पांचवें प्रधानमंत्री बने:
1977 में देश में लगी इमरजेंसी समाप्त हुई। लोकसभा चुनाव हुए और इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी की बुरी तरह हार हुई। देश में पहली बार गैर-कांग्रेसी पार्टियों ने मिलकर सरकार बनाई। प्रमुख बहुमत वाली जनता पार्टी की सरकार बनी, मोरार जी देसाई ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। इस सरकार में चौधरी चरण सिंह देश के उप-प्रधानमंत्री एवं गृहमंत्री बने। कुछ ही दिनों बाद जनता पार्टी में अंदरूनी कलह शुरू हो गई और इसी के चलते मोरारजी की सरकार गिर गई। बाद में 28 जुलाई 1979 को कांग्रेस के ही सपोर्ट से चरण सिंह देश के प्रधानमंत्री बने। 5 महीने बाद ही इंदिरा ने अपना समर्थन वापस ले लिया और चरण सिंह की सरकार गिर गई। प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्हें एक बार भी संसद में बोलने का मौका नहीं मिला। ऐसा माना जाता है कि अगर चौधरी चरण सिंह संसद में बोलते तो आज देश के किसानों की हालत कुछ और होती।
लिखने के शौक़ीन थे...
देश के प्रधानमंत्री तक रहे लेकिन चौधरी चरण सिंह ने हमेशा अत्यंत साधारण जीवन व्यतीत किया। खाली समय में वे पढ़ने और लिखने का काम करते थे। अपने जीवनकाल में उन्होंने कई किताबें एवं रूचार-पुस्तिकाएं लिखीं जिसमें- प्रिवेंशन ऑफ़ डिवीज़न ऑफ़ होल्डिंग्स बिलो ए सर्टेन मिनिमम, भारत की गरीबी और उसका समाधान, ज़मींदारी उन्मूलन, किसानों की भूसंपत्ति या किसानों के लिए भूमि, को-ऑपरेटिव फार्मिंग एक्स-रयेद् आदि पुस्तकें शामिल हैं।
देश में ऐसे कुछ ही राजनेता ऐसे हुए हैं जिन्होंने लोगों के बीच सरलता से रहकर उनके कार्य करते हुए इतनी लोकप्रियता हासिल की हो। देश को अपना पूरा जीवन समर्पित करने वाले एवं सामाजिक न्याय में दृढ़ विश्वास रखने वाले श्री चरण सिंह हमेशा किसानों के बीच रहे, यही उनके आत्मविश्वास के पीछे का कारण भी रहा। 29 मई 1987 को लगभग 85 वर्ष की उम्र में श्री चरण सिंह का निधन हो गया।
देशभर में जनता दल परिवार की आज जितनी भी पार्टियां हैं, जैसे- मुलायम सिंह की 'समाजवादी पार्टी', बिहार में 'राष्ट्रीय जनता दल एवं जनता दल यूनाइटेड', उड़ीसा में 'बीजू जनता दल', ओमप्रकाश चौटाला की 'लोक दल', अजीत सिंह का ऱाष्ट्रीय लोक दल आदि, ये सभी दल चौधरी चरण सिंह की ही विरासत हैं।