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पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के जन्म से लेकर उनके वसीयत लिखने तक का सफर, जानिए सबकुछ

Ashish Urmaliya

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवंबर 1889 इलाहाबाद के एक रुतवेदार व धनाढ्य परिवार में हुआ था। पिता मोतीलाल नेहरू पेशेवर वकील थे। जवाहरलाल नेहरू अपने पिता के इकलौते पुत्र थे और उनकी तीन सगी बहनें भी थीं। नेहरू जी के पिता जी इंडियन नेशनल कांग्रेस के लीडर भी रहे। माता जी का नाम स्वरूप रानी था जो एक कश्मीरी ब्राह्मण थीं। मो‍तीलाल नेहरू से स्वरूप रानी का विवाह 1886 में हुआ था।

पंडित जवार लाल नेहरू की पढ़ने-लिखने में बहुत रूचि थी, होशियार भी थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा निजी शिक्षकों से घर पर ही प्राप्त की, इलाहबाद में ही रहे। इसके बाद 15 वर्ष की उम्र में ही (साल 1904 में) उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए वो विलायत (इंग्लैंड) चले गए। शुरूआती 2 साल हैरो में रहे फिर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के ट्रिनिटी कॉलेज में प्रवेश ले लिया जहां से उन्होंने प्राकृतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। फिर लंदन में ही इनर टेंपल (बैरिस्टर और जज के लिए पेशेवर एसोसिएशन) में दो वर्ष बिताकर उन्होंने वकालत की पढ़ाई भी की। हैरो और कैम्ब्रिज में पढ़ाई करने के बाद नेहरू जी ने 1912 में बार-एट-लॉ की उपाधि ग्रहण की और वे बार में बुलाए गए।

साल 1912 में भारत लौटे-

पंडित नेहरू शुरू से ही गांधी जी से प्रभावित थे, साल 1912 में भारत लौटने के बाद वे सीधे राजनीति से जुड़ गए। छात्र जीवन से ही उनकी रूचि राजनीति में रही है वे विदेशी हुकूमत के अधीन देशों के स्वतंत्रता संघर्ष में काफी रुचि रखते थे क्योंकि उनका स्वयं का देश इस समस्या से जूझ रहा था। उस वक्त उन्होंने आयरलैंड में हुए सिनफेन आंदोलन में भी गहरी रुचि ली थी। इसके बाद वे स्वयं भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अनिवार्य रूप से शामिल हो गए।

प्रधानमंत्री बनने से पहले का राजनैतिक जीवन -

1912 में ही उन्होंने एक प्रतिनिधि के तौर पर बांकीपुर सम्मेलन में भाग लिया। साल 1916 में उनका पहली बार महात्मा गांधी से मिलना हुआ, जिनसे वो और भी ज्यादा प्रेरित हुए। भारत की आजादी की लड़ाई की सबसे बड़ी घटना 1919 के जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद पंडित नेहरू ने भारतीय राजनीति को दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन दिनों मौलाना मोहम्मद अली जौहर के कहने पर वह जलियांवाला कांड के कारणों की जांच के लिए बनायी गई समिति के सदस्य बने थे। साल 1919 में ही इलाहाबाद के होम रूल लीग के सचिव बने फिर 1920 में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में पहले किसान मार्च का आयोजन स्वयं के नेतृत्व में किया। असहयोग आंदोलन के दौरान साल 1920-22 के बीच उन्हें दो बार जेल भी जाना पड़ा था।

जवाहर लाल नेहरू सितंबर 1923 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव बनाए गए। 1926 में उन्होंने इंग्लैंड, बेल्जियम, जर्मनी, इटली, स्विट्जरलैंड एवं रूस जैसे देशों क दौरा किया। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक आधिकारिक प्रतिनिधि के रूप में बेल्जियम के ब्रुसेल्स में दीन देशों के सम्मेलन में भाग लिया। साल 1926 में, मद्रास कांग्रेस में कांग्रेस को आजादी के लक्ष्य के लिए प्रतिबद्ध करने में नेहरू जी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। साल 1927 में मास्को में अक्तूबर समाजवादी क्रांति की दसवीं वर्षगांठ समारोह का हिस्सा भी बनें। 1928 में लखनऊ में जब नेहरू जी साइमन कमीशन के खिलाफ एक जुलूस का नेतृत्व कर रहे थे तब उन पर लाठी चार्ज किया गया था। वे उनलोगों में से एक थे जिन्होंने भारतीय संवैधानिक सुधार से संबंधित नेहरू रिपोर्ट पर अपने हस्ताक्षर किये थे। इस रिपोर्ट का नाम उनके पिता श्री मोतीलाल नेहरू के नाम पर रखा गया था। उसी वर्ष नेहरू जी ने ‘भारतीय स्वतंत्रता लीग’ की स्थापना भी की एवं इसके महासचिव बने। ‘भारतीय स्वतंत्रता लीग’ का मुख्य उद्देश्य भारत को ब्रिटिश साम्राज्य से पूर्णतः अलग करना था। 29 अगस्त 1928 को नेहरू जी ने सर्वदलीय सम्मेलन में भाग लिया। फिर साल1929 में पंडित नेहरू भारतीय राष्ट्रीय सम्मेलन के लाहौर सत्र के अध्यक्ष चुने गए, जिसका मुख्य लक्ष्य भारत को पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त करना था।1930 से 1935 के दौरान नमक सत्याग्रह एवं कांग्रेस के अन्य आंदोलनों के कारण नेहरू जी को कई बार जेल जाना पड़ा था। 14 फ़रवरी 1935 को जब वे अल्मोड़ा जेल में बंद थे तब उन्होंने अपनी ‘आत्मकथा’ का लेखन कार्य पूर्ण किया।

पत्नी कमला बहुत दिनों से बीमार थीं, जेल से रिहाई बाद उन्हें देखने स्विट्जरलैंड गए। फिर फरवरी-मार्च, 1936 में लंदन का दौरा किया। स्पेन में चल रहे गृह युद्ध के दौरान जुलाई 1938 में उन्होंने स्पेन का भी दौरा किया। द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने से कुछ समय पहले वे चीन के दौरे पर भी गए थे, ये सभी दौरे राजनैतिक थे।

आगे की लड़ाई और भी कठिन थी -

अभी लड़ाई लंबी बाकी थी, जो लोग भारत को युद्ध में भाग लेने के लिए मजबूर कर रहे थे उनका विरोध करते हुए पंडित जवाहरलाल नेहरू ने व्यक्तिगत सत्याग्रह किया था, जिसके चलते 31 अक्टूबर 1940 को उन्हें फिर गिरफ्तार होना पड़ा। लगभग 12 महीने जेल में बिताने के बाद उन्हें दिसंबर 1941 में अन्य नेताओं के साथ जेल से रिहाई मिली। 7 अगस्त 1942 को मुंबई में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक का आयोजन किया जिसमें पंडित नेहरू ने ऐतिहासिक संकल्प ‘भारत छोड़ो’ को कार्यान्वित करने का लक्ष्य निर्धारित किया। अगले ही दिन यानी 8 अगस्त 1942 को उन्हें अन्य साथी नेताओं के साथ गिरफ्तार कर अहमदनगर किला ले जाया गया। और इस तरह उन्हें फिर से जेल जाना पड़ा, लेकिन यह आखिरी मौका था जब उन्हें जेल जाना पड़ा और इसी बार उन्हें जेल में सबसे लंबे वक्त तक भी रहना पड़ा था।

तकरीबन ढाई वर्ष बाद, जनवरी 1945 में उनकी रिहाई हुई। रिहाई के तुरंत बाद उन्होंने राजद्रोह का आरोप झेल रहे इंडियन नेशनल आर्मी (INA) के अधिकारियों एवं व्यक्तियों का कानूनी बचाव किया। आपको बताते चलें, इंडियन नेशनल आर्मी (INA) की स्थापना मोहन सिंह ने साल 1942 में की थी, वे इसके कमांडर इन चीफ भी रहे। इसके बाद कमांडर इन चीफ की ज़िम्मेदारी सुभाष चंद्र बोस ने अपने कंधों पर ली। बाद में इस आजाद हिन्द फ़ौज(Indian National Army) को सुभाष चंद्र बोस द्वारा ही 'नेहरू ब्रिगेड' नाम दे दिया गया। मार्च, 1946 में पंडित नेहरू ने दक्षिण-पूर्व एशिया का दौरा किया। 6 जुलाई 1946 को वे लगातार चौथी बार कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। फिर साल 1951 से 1954 के बीच तीन बार पुनः इस पद के लिए चुने गए।

भारत रत्न, 6 बार कांग्रेस अध्यक्ष, 11 बार नोबेल नॉमिनेशन और 9 बार जेल-

जब नेहरू जी भारत लौटे उसके चार वर्ष बाद 1916 में उनका विवाह कमला कौल के साथ हुआ, जो दिल्ली में बसे एक कश्मीरी परिवार से ताल्लुक रखती थीं। इसी शादी के बाद से उनका नाम 'पंडित नेहरू' भी बेहद प्रचलित हुआ। बच्चों से उनका ख़ासा प्रेम था, पंडित नेहरू बच्चों को देश का भावी निर्माता मानते थे। बच्चों का उनके प्रति और उनका बच्चों के प्रति जो प्रेम था, उसी प्रेम से उत्पत्ति हुई एक बहुत प्रचलित नाम की जो 'चाचा नेहरू' है। साल 1919 और 1920 में मोती लाल नेहरू कांग्रेस के अध्यक्ष बने। तभी 1919 में ही पंडित जवाहर लाल नेहरू को महात्मा का सानिध्य प्राप्त हुआ। वे महात्मा गांधी जी के साथ कई जगहों पर गए। पंडित जी ने 6 बार कांग्रेस अध्यक्ष के पद (लाहौर 1929, लखनऊ 1936, फैजपुर 1937, दिल्ली 1951, हैदराबाद 1953 और कल्याणी 1954) को सुशोभित किया, पंडित नेहरू 9 बार जेल भी गए, जिसमें उन्होंने अपने जीवन के लगभग 9 वर्ष काटे। पंडित नेहरू को 11 बार नोबेल शांति पुरस्कार के लिए भी नामित किया गया। प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने पंचशील का सिद्धांत प्रतिपादित किया और 1954 में 'भारतरत्न' से अलंकृत हुए। वे तटस्थ राष्ट्रों को संगठित कर, एक साथ लाए थे और उनका नेतृत्व भी किया।

देश का प्रथम प्रधानमंत्री बनने की दास्तान-

सन् 1947 में भारत को आजादी मिली। फिर उसके बाद भावी प्रधानमंत्री के लिए कांग्रेस में मतदान हुआ तो सरदार वल्लभभाई पटेल और आचार्य कृपलानी को सर्वाधिक मत प्राप्त हुए। किंतु महात्मा गांधी के कहने पर इन दोनों ने अपना नाम वापस ले लिया (इसके पीछे का कारण सिर्फ महात्मा गांधी ही जानते हैं)। इसके बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू को देश का पहला प्रधानमंत्री बनाया गया। सन् 1947 में स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू बने। पंडित जी आजादी के पहले गठित अंतरिम सरकार में और आजादी के बाद 1947 में भारत के प्रधानमंत्री बने। 27 मई 1964 को उनके निधन तक वे भारत के प्रधानमंत्री पद पर काबिज रहे।

देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने नवीन भारत के सपने को साकार करने की पुरजोर कोशिश की। सन् 1950 में उन्होंने कई नए नियम बनाए, जिससे देश में आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक विकास शुरू हो सका। हालांकि नेहरू पाकिस्तान और चीन के साथ भारत के संबंधों को सुधरने में असमर्थ रहे। उन्होंने चीन की तरफ मित्रता का हाथ भी बढ़ाया था, लेकिन 1962 में चीन ने धोखे से आक्रमण कर दिया। मित्रता के अथक प्रयासों के बाद भी चीन का आक्रमण जवाहरलाल नेहरू के लिए एक बड़ा झटका था और शायद यही आक्रमण उनकी मृत्यु की वजह भी बना। 27 मई 1964 की सुबह नेहरू की तबीयत अचानक से बिगड़ गई। उन्हें दिल का दौरा पड़ा था इसी के चलते दोपहर दो बजे उनका निधन हो गया। जेल में रहते हुए उन्होंने अपनी बेटी इंदिरा को 146 पत्र लिखे थे, जो उनकी किताब Glimpses of World History का हिस्सा हैं। आपने श्याम बेनेगल की टेलीविजन सीरीज 'भारत एक खोज' देखी या इसके बारे में सुना ज़रूर होगा, यह टीवी सीरीज पंडित नेहरू की किताब 'द डिस्कवरी ऑफ इंडिया' पर ही आधारित थी।

यह कहने में हमें कोई गुरेज नहीं है कि पंडित जवाहर लाल नेहरू आधुनिक भारत के निर्माता थे। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद खस्ताहाल और विभाजित भारत का नवनिर्माण करना होई आसान काम नहीं था। पंचवर्षीय योजना उनकी दूरगामी सोच का ही परिणाम था, जिसके नतीजे सालों बाद दिखाई दे रहे हैं। भारत में स्वस्थ लोकतंत्र की नींव रखने और इसे मजबूत बनाने में सबसे महत्वपूर्ण योगदान पंडित नेहरू का ही था। पंडित जवाहरलाल नेहरू के कार्यकाल के मुख्य उद्देश्य राष्ट्र और संविधान के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को स्थायी भाव प्रदान करना, लोकतांत्रिक परंपराओं को मजबूत करना एवं योजनाओं के माध्यम से देश की अर्थव्यवस्था को सुचारू करना था।

उनका पहनावा पहचान बन कर उभरा, उन्हें उस दौर का ट्रेंड सेटर कहा जाए, तो कुछ गलत नहीं होगा!

नेहरू जी के पहनावे का हर कोई दीवाना था चाहे वह देश हों या फिर विदेश में। उनकी ऊंची कॉलर वाली जैकेट जो आज के दौर में 'नेहरू जैकेट' के नाम बिकती है, उसने उन्हें उस वक्त का 'फैशन आइकॉन' बना दिया था। आज भी हम-आप जैसे युवा नेहरू जैकेट को ऑनलाइन शॉपिंग प्लेटफॉर्म्स से ले कर मार्केट तक में तलाशते पाए जाते हैं।

वसीयत में क्या लिखा था?

पंडित जवाहर लाल नेहरू ने अपनी वसीयत में लिखा था कि "मैं चाहता हूं कि मेरी मुट्ठीभर राख प्रयाग के संगम में बहा दी जाए जो हिन्दुस्तान के दामन को चूमते हुए समंदर में जा मिले, लेकिन मेरी राख का ज्यादातर हिस्सा हवाई जहाज से ऊपर ले जाकर खेतों में बिखेर दिया जाए, वो खेत जहां हजारों मेहनतकश इंसान काम में लगे हैं, ताकि मेरे वजूद का हर जर्रा वतन की खाक में मिलकर एक हो जाए।" प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू एक जिंदादिल इंसान थे जिनका नाम हमेशा ही भारत के कौने-कौने में याद किया जाता रहेगा। सादर नमन!

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