AshishUrmaliya || Pratinidhi Manthan
जब से CAA, NRC का मुद्दा सामने आया है, लोगों के बीच में भ्रम की स्थिति बनी हुई है। आम लोगों को छोड़िये अदालतें तक इसको लेकर कन्फ्यूज नजर आ रही हैं।
12 फरवरी को गुवाहाटी हाई कोर्ट ने बाबुल इस्लाम बनाम असम राज्य केस में 2018 के अपने फैसले को कायम रखते हुए कहा है, कि मतदाता पहचान पत्र नागरिकता प्रमाणपत्र नहीं है। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा, कि भूमि राजस्व रसीद, पैन कार्ड और बैंक दस्तावेजों का उपयोग नागरिकता साबित करने के लिए नहीं किया जा सकता।
सुनवाई के दौरान गुवाहाटी अदालत ने कहा, कि याचिका कर्ता ने साल 1997 के पहले की मतदाता सूचियों में अपने नाम को प्रस्तुत नहीं किया, इसलिए वह यह साबित करने में विफल रहा, कि वह मार्च 1971 के पहले से असम में रह रहा था। इसी के साथ अदालत ने एक अन्य ऐसे व्यक्ति के दावों को भी ख़ारिज कर दिया, जिसने अपने माता पिता के नामों के प्रमाण पत्रों को प्रस्तुत किया था, क्योंकि वह अपने माता-पिता से संबंध साबित नहीं कर पाया था। याचिकाकर्ता द्वारा पैन कार्ड एवं बैंक के दस्तावेज भी प्रस्तुत किये थे, उन्हें भी कोर्ट ने यह कहते हुए स्वीकारने से मना कर दिया था, कि ये दस्तावेज नागरिकता के सबूत नहीं हैं।
इससे पहले असम के तिनसुकिया जिले में मुनींद्र विश्वास द्वारा दायर मामले में भी यही फैसला दिया गया था, जिसमें एक विदेशी ट्रिब्यूनल के फैसले को
चुनौती दी गई थी। उस वक्त भी कोर्ट ने वोटिंग कार्ड को नागरिकता का सबूत मानने से इंकार कर दिया था।
इसके उलट एक मामला मुंबई से सामने आया था, जहां मजिस्ट्रेट ने एक बांग्लादेशी दंपत्ति की नागरिकता से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए कहा था, कि अधिवास प्रमाण पत्र, जन्म प्रमाण पत्र, पासपोर्ट आदि भारतीय नागरिकता का आधार माना जा सकता है।
दंपत्ति को बरी करते हुए कोर्ट ने कहा था, कि निर्वाचन कार्ड को नागरिकता का पर्याप्त प्रमाण माना जा सकता है क्योंकि वोटिंग कार्ड के लिए आवेदन करते वक्त व्यक्ति को लोक प्रतिनिधित्व कानून के फॉर्म 6 में शपथ पत्र भरना होता है कि वह भारत का नागरिक है। इन केस शपथ पत्र झूठा पाया जाता है तो वह व्यक्ति सज़ा का अधिकारी होगा।
इन सभी फैसलों से पता चलता है, कि इस मुद्दे को लेकर हमारी अदालतें कितनी कन्फ्यूज हैं।