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क्या जेएनयू के छात्र सिर्फ बढ़ी फीस की वजह से प्रदर्शन कर रहे हैं?

Lubna

Ashish Urmaliya ||Pratinidhi Manthan

जवाहरलालनेहरू विश्वविद्यालय(JNU) के छात्र हॉस्टल और कैंटीन की बढ़ी फीस के चलते लगातार प्रदर्शनकर रहे हैं। यहां के छात्र बीते कुछ दिनों से यूनिवर्सिटी के अंदर प्रदर्शन कर रहेथे फिर बाहर आ गए और 18 नवंबर यानी सोमवार के दिन करीब 1000 छात्रों ने संसद तक कीमार्च निकाली। छात्रों का आरोप है, कि पुलिस द्वारा लाठीचार्ज किया गया, कई छात्र लहूलुहानऔर घायल हो गए हैं जबकि पुलिस का कहना है, कि कोई लाठीचार्ज नहीं किया गया। बस, छात्रोंको रोकने का साधारण प्रयास किया गया था। 

जेएनयूमें करीब 4 दशकों बाद फीस वृद्धि की गई और छात्रावास के कुछ नियमों में बदलाव कियेगए, फीस कितनी बढ़ी उस पर बहुत सारे आर्टिकल्स लिखे जा चुके हैं। विरोध हुआ, कहा गयाकि विश्वविद्यालय में करीब 40 फीसदी विद्यार्थी गरीब हैं तो फिर प्रशासन ने बढ़ी हुईफीस में लगभग 50 फीसदी कटौती कर दी। लेकिन एक शर्त रखी, कि बढ़ी हुई फीस सिर्फ गरीबीरेखा के नीचे आने वाले छात्रों के लिए ही कम की जाएगी। लेकिन छात्र फिर भी संतुष्टनहीं हुए उन्हें यह घटी हुई फीस अब भी ज्यादा लग रही है और साथ ही वे यह आरोप भी लगारहे हैं कि फीस बढ़ा कर पब्लिक शिक्षा के ढांचे पर प्रहार किया जा रहा है।

स्पेशल ब्रांच की रिपोर्ट मेंहुआ खुलासा-

दिल्लीपुलिस की स्पेशल ब्रांच की एक गोपनीय रिपोर्ट में यह बात कही गई है, कि पहले JNU केआंदोलनकारी छात्रों का संसद मार्च निकालने का कोई उद्देश्य नहीं था, इन छात्रों नेभारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) और मार्क्‍सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के बड़ेनेताओं के निर्देश पर इस मार्च को अंजाम दिया। इस जानकारी के बाद, स्थिति और न बिगड़नेपाए इसलिए दिल्ली पुलिस के 800 कांस्टेबल और केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की 10 कंपनियांजेएनयू पर तैनात कर दी गईं और 3 प्रमुख मेट्रो स्टशनों को बंद कर दिया गया था।

विरोध वाजिब है!

देशके 10 प्रमुख केंद्रीय विश्वविद्यालयों से तुलना करें तो फीस बढ़ने के बाद जेनयू कीफीस सबसे ज्यादा होगी। कुछ लोग यह भी मानते थे, कि फीस बढ़ने से पहले जेएनयू की हॉस्टलऔर मेस की फीस सभी विश्वविद्यालयों में सबसे कम हुआ करती थी तो उनको बता दें, यह बिलकुलगलत है। बीएचयू, एचसीयू, विश्वभारती विश्वविद्यालय और जामिया जैसे विश्वविद्यालयोंकी हॉस्टल और मेस की कुल मिलाकर फीस जेएनयू की पुरानी फीस से भी कम है। 

लेकिनअब जेएनयू में जो बढ़ोत्तरी हुई है, वह कुछ ज्यादा ही हो गई है। यह बात सच है और ऐसाप्रतीत होता है कि फीस बढ़ोत्तरी में राजनैतिक दखल हुआ है। लेकिन यह राजनैतिक दखल सिर्फजेएनयू में ही क्यों हुआ? क्या विशेष रूप से इस विश्वविद्यालय पर राजनेताओं का ध्यानखींचने के पीछे का कारण कन्हैया कुमार, शेहला राशिद और उमर खालिद जैसे लोग हैं? क्याइन लोगों की ही वजह से ही आज युनिवर्सिटी के अन्य छात्रों को यह भुगतमान करना पड़ रहाहै? मुख्य सवाल यह है, कि सिर्फ इसी यूनिवर्सिटी को टारगेट क्यों किया गया, इसका जवाबजेएनयू के छात्रों को खोजना चाहिए। और प्रशासन को फीस में बढ़ोतरी करनी ही थी तो फिरसंतुलित रूप में और आर्थिक आधार पर करना चाहिए था।

#राजनीति?

किसकी क्या राजनीति है, कौन सहीखेल रहा है और कौन गलत जा रहा है?

होसकता है, कि देशभर से राजनीतिक फायदा लेने के लिए, किसी प्रचंड राजनीतिज्ञ के दिमागसे यह ख्याल निकला हो। यह एक अखंड सत्य है, कि देशभर में जेएनयू को साम्यवादियों(Communists)के गढ़ के रूप में चित्रित किया जाता है और यह बात कहीं न कहीं सच भी है। देश के कईहिंदूवादी संगठन और हिंदूवादी विचारधारा रखने वाले के लोग साम्यवाद के धुरविरोधी हैं।हो सकता है इन्हीं लोगों को लुभाने के लिए इस फीस में वृद्धि की गई हो, क्योंकि यहजिसके भी दिमाग की उपज है उसको यह भी पता था, कि इस फीस वृद्धि का जमकर विरोध होगा।अपने आचरण अनुसार, जेएनयू के छात्र सड़कों पर उतर आएंगे और पूरे देश के हिंदूवादी विचारधारावाले लोग इस बढ़ोत्तरी का समर्थन करते हुए प्रशासन के साथ प्रतिबद्धता से खड़े हो जायेंगे।अंदरूनी रूप से देशभर के राइट विंग के लोगों का समर्थन सरकार के साथ और गहरा होने कीप्रबल संभावनाएं हैं। अब बात आती है आंदोलनकरियों की, तो अगर ये प्रदर्शन साम्यवादीपार्टियों के निर्देशन से हो रहा है, तो यह आपको सोचना है, कि अंत में राजनीतिक रूपसे आखिर फायदा किसको होगा। 

एक और बात, हॉस्टल और मेस फीसमें बढ़ोत्तरी के साथ कुछ अन्य नियमों में भी बदलाव किया गया है। जिनमे से एक सबसे बड़ाबदलाव जो माना जा रहा है वह है "कि अब हॉस्टल में रात्रि 10 बजे के बाद कोई भीबाहरी व्यक्ति नहीं रुक सकता और बॉयज हॉस्टल में लड़कियों के आने पर भी पूरी तरह सेप्रतिबंध लगा दिया गया है। गुस्से का एक कारण ये बदलाव भी हो सकता है।

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