Shattila Ekadashi (Magh Krishna Ekadashi) Shattila Ekadashi (Magh Krishna Ekadashi)
ज्योतिष

षट्तिला एकादशी (माघ कृष्ण एकादशी)

Manthan

षट्तिला एकादशी की कथा

(कथा की शुरुआत)

हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का अत्यंत महत्व है, और षट्तिला एकादशी (माघ कृष्ण एकादशी) का विशेष महत्त्व बताया गया है। यह व्रत न केवल आध्यात्मिक लाभ देता है, बल्कि दान और परोपकार का भी विशेष महत्व इस एकादशी में बताया गया है। षट्तिला एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति अपने पापों का नाश कर पुण्य की प्राप्ति करता है। इस व्रत की कथा अत्यंत रोचक और ज्ञानवर्धक है, जिसमें तिल का विशेष महत्व बताया गया है। आइए, इस कथा को विस्तार से जानते हैं।

कथा का प्रारंभ

प्राचीन समय की बात है। एक समय धरती पर एक धार्मिक और भक्तिपूर्ण ब्राह्मणी रहती थी। वह अत्यंत धर्मात्मा और निष्ठावान थी। वह भगवान विष्णु की पूजा में लीन रहती थी और अपना जीवन प्रभु की भक्ति में व्यतीत करती थी। वह धार्मिक कृत्यों का पालन करती, पूजा-पाठ में लीन रहती, लेकिन एक बड़ी कमी थी—वह कभी दान नहीं करती थी।

ब्राह्मणी ने जीवन में अन्न, जल या धन किसी को भी दान नहीं किया था। समय बीतता गया, और भले ही वह धार्मिक कार्य करती, दान का अभाव उसके जीवन में एक खालीपन बना रहा। लेकिन उसने कभी इस पर ध्यान नहीं दिया और अपनी पूजा और तपस्या को ही पर्याप्त माना।

भगवान विष्णु का आगमन

एक दिन, भगवान विष्णु ने उसकी भक्ति और तपस्या से प्रसन्न होकर उसके घर जाने का निश्चय किया। भगवान ने ब्राह्मणी के घर भिक्षुक का रूप धारण कर प्रवेश किया और दरवाजे पर जाकर भिक्षा मांगी।

ब्राह्मणी ने जब भिक्षुक को देखा, तो उसे कुछ भी दान करने का विचार नहीं आया। उसके घर में बहुत सारे अनाज और अन्य चीजें थीं, लेकिन उसने उन्हें नहीं दिया। कुछ समय सोचने के बाद, उसने एक मिट्टी का ढेला उठाया और भिक्षुक को भिक्षा में दे दिया।

तपस्या का फल

भगवान विष्णु भिक्षा के रूप में मिट्टी का ढेला लेकर अदृश्य हो गए। उस समय ब्राह्मणी को यह नहीं पता था कि वह कोई साधारण भिक्षुक नहीं, बल्कि स्वयं भगवान विष्णु थे।

समय बीतता गया, और ब्राह्मणी की मृत्यु के बाद उसे स्वर्ग में स्थान मिला। स्वर्ग में उसे बहुत सुंदर भवन प्राप्त हुआ, लेकिन उस भवन में कुछ विचित्र था—उस भवन में कोई भी अन्न, जल या आवश्यक सामग्री नहीं थी। वह इस अभाव से बहुत परेशान हो गई और वहां के देवताओं से इसका कारण पूछा।

सच्चाई का पता

देवताओं ने ब्राह्मणी को बताया, "तुमने जीवन में अत्यंत पूजा और भक्ति की, लेकिन तुमने कभी भी किसी को अन्न, जल या धन का दान नहीं किया। केवल एक बार तुमने मिट्टी का ढेला दान किया था, इसलिए तुम्हें यह खाली भवन मिला है, जिसमें खाने-पीने की कोई व्यवस्था नहीं है।"

ब्राह्मणी ने अपने इस कर्म पर अत्यंत पश्चाताप किया और भगवान विष्णु से क्षमा याचना की। उसने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि उसे दान करने का अवसर फिर से प्राप्त हो, ताकि वह अपने पापों का निवारण कर सके।

षट्तिला एकादशी का महत्व

भगवान विष्णु ने ब्राह्मणी की प्रार्थना सुनकर उसे एक उपाय बताया। भगवान ने कहा, "तुम पृथ्वी पर जाकर माघ मास की कृष्ण पक्ष की षट्तिला एकादशी का व्रत करो। इस दिन तिल का उपयोग स्नान, दान, हवन, भोजन और तिल से बने व्यंजनों में करना अत्यंत पुण्यकारी होगा। इस व्रत से तुम्हारे पापों का नाश होगा और तुम पुनः पुण्य का भागी बनोगी।"

ब्राह्मणी ने भगवान विष्णु के कहे अनुसार व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से उसके सारे पाप समाप्त हो गए और उसे पुनः स्वर्ग में संपूर्ण सुख-सुविधाओं के साथ स्थान प्राप्त हुआ।

कथा का संदेश

षट्तिला एकादशी की यह कथा हमें यह सिखाती है कि भक्ति के साथ-साथ दान और परोपकार का भी जीवन में अत्यंत महत्त्व है। बिना दान के भक्ति और तपस्या अधूरी मानी जाती है। तिल का इस व्रत में विशेष महत्व है, और इस व्रत के पालन से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट होते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।

"इस व्रत में तिल के उपयोग से जीवन के सभी कष्ट दूर होते हैं, और भगवान विष्णु की कृपा से व्यक्ति को समृद्धि और मोक्ष की प्राप्ति होती है।"

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