Mahalakshmi Vrat Katha 
ज्योतिष

महालक्ष्मी व्रत कथा

Manthan

महालक्ष्मी व्रत कथा।

महालक्ष्मी व्रत, जो 16 दिनों तक चलता है, देवी लक्ष्मी को समर्पित एक अत्यंत पवित्र व्रत है। इस व्रत का पालन करने से सुख, समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है। महालक्ष्मी व्रत से जुड़ी कई कथाएँ हैं, लेकिन यहाँ हम एक प्रमुख कथा को साझा कर रहे हैं जो इस व्रत के महत्व को दर्शाती है।

व्रत का महत्व और विधि।

इस व्रत का पालन भाद्रपद शुक्ल अष्टमी से शुरू होकर 16 दिनों तक किया जाता है। व्रतधारी प्रतिदिन सुबह स्नान करके देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं। पूजा के दौरान 16 धागों की माला बनाकर, उसे हल्दी में रंगकर देवी को अर्पित किया जाता है। इसके अलावा, हर दिन देवी लक्ष्मी को 16 दूर्वा और 16 गेहूं की बाली अर्पित की जाती है। अंतिम दिन, व्रत का समापन चंद्रमा को अर्घ्य देकर किया जाता है। इस व्रत के प्रभाव से परिवार में सुख-शांति और धन-धान्य की वृद्धि होती है।

हाथी पूजा का महत्व

महालक्ष्मी व्रत के दौरान एक विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है, जिसे हाथी पूजा कहते हैं। इस पूजा में देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए हाथी की प्रतिमा या चित्र का पूजन किया जाता है। हाथी को देवी लक्ष्मी का वाहन माना जाता है, और यह समृद्धि, वैभव और शक्ति का प्रतीक होता है। महिलाएँ हाथी की पूजा करके धन और समृद्धि की प्राप्ति की प्रार्थना करती हैं। पूजा के दौरान 16 दूर्वा (घास) अर्पित की जाती हैं, और देवी के चरणों में हल्दी-कुमकुम, अक्षत और जल अर्पित किया जाता है।

व्रत के दौरान क्या खाएं

महालक्ष्मी व्रत का पालन करने वालों को विशेष प्रकार का भोजन ग्रहण करना चाहिए। व्रतधारी इस दौरान फलाहार और सात्विक भोजन का सेवन करते हैं। जैसे:

फल: विभिन्न प्रकार के फल जैसे केला, सेब, और नारियल।

दूध: दूध और दूध से बनी मिठाइयाँ जैसे खीर या रबड़ी।

साबूदाना: साबूदाना खिचड़ी या साबूदाना वड़ा, जो उपवास के लिए उपयुक्त होते हैं।

कुट्टू का आटा: कुट्टू के आटे की पूरियाँ और आलू की सब्जी।

सिंघाड़े का आटा: सिंघाड़े के आटे से बने व्यंजन।

व्रतधारियों को पूरे दिन निराहार या फलाहार पर रहना चाहिए और रात्रि को चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का समापन करना चाहिए।

व्रत का समापन और नियम

व्रत के 16वें दिन व्रतधारी चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का समापन करते हैं। इस दिन विशेष पूजा और आरती की जाती है और देवी लक्ष्मी से परिवार की समृद्धि और सुख-शांति की कामना की जाती है। व्रत के समापन पर गरीबों को भोजन और वस्त्र दान देने की परंपरा भी है, जिससे व्रत का पूर्ण फल प्राप्त होता है।

कथा का प्रारंभ।

प्राचीन काल में एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण अपने परिवार के साथ रहता था। उसकी आर्थिक स्थिति बहुत दयनीय थी और उसके पास परिवार का भरण-पोषण करने के लिए पर्याप्त साधन नहीं थे। ब्राह्मण अत्यंत धर्मप्रिय था और प्रतिदिन भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा करता था। एक दिन, ब्राह्मण ने अपने दुःखों से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना की। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे दर्शन दिए और कहा, "तुम महालक्ष्मी व्रत का पालन करो, तुम्हारे सभी कष्ट दूर हो जाएंगे और देवी लक्ष्मी तुम्हारे घर में सदा निवास करेंगी।"

भगवान विष्णु की आज्ञा का पालन करते हुए ब्राह्मण ने 16 दिनों तक महालक्ष्मी व्रत का कठोर पालन किया। उसने देवी लक्ष्मी की पूजा की और विधिपूर्वक व्रत के सभी नियमों का पालन किया। व्रत समाप्त होते ही देवी लक्ष्मी ने ब्राह्मण के घर में प्रवेश किया और उसके जीवन में सुख-समृद्धि की वर्षा कर दी। ब्राह्मण का घर धन-धान्य से भर गया और उसके परिवार को कभी भी किसी प्रकार की आर्थिक तंगी का सामना नहीं करना पड़ा।

बोलिये श्री महालक्ष्मी की जय।

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