"फ़्लाइंग सिख" के नाम के पीछे की दिलचस्प कहानी का खुलासा मिल्खा ने एक इंटरव्यू में किया था 
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"फ़्लाइंग सिख" के नाम के पीछे की दिलचस्प कहानी का खुलासा मिल्खा ने एक इंटरव्यू में किया था

Pramod

भारत के "फ़्लाइंग सिख(FLYING SIKH)" मिल्खा सिंह(Milkha Singh) भारतीय एथलेटिक्स(athletics) के खिलाडी थे। उन्होंने पुरे विश्व में भारत का परचम लहराया। आज़ाद भारत का पहला स्वर्ण मिल्खा को 1958 के कॉमनवेल्थ गेम्स(commonwealth games) की दौड जित कर मिला। लेकिन 1960 के रोम ओलम्पिक(rome olympics) में मिल्खा पदक से चूक गए।

"फ़्लाइंग सिख(FLYING SIKH)" के नाम के पीछे की दिलचस्प कहानी का खुलासा मिल्खा ने एक इंटरव्यू में किया था। उन्होंने बताया था की, 1960 में उन्हें पाकिस्तान की इंटरनेशनल एथलीट प्रतियोगिता (international athlete competition) में हिस्सा लेने का मौका मिला था। मिल्खा भी उन हज़ारों-लाखों में से थे जिनके दिल और दिमाग पर भारत-पाकिस्तान के बटवारे ने घर कर लिया था।

वह बटवारे के मंज़र भूल नहीं पा रहें थे इस लिए उनका पाकिस्तान(Pakistan) जाने का दिल नहीं था। जवाहरलाल नेहरू(Jawaharlal Nehru) के सुझाने पर वह पाकिस्तान(Pakistan) जाने के लिए राजी हो गए। पाकिस्तान(Pakistan) में उस समय अब्दुल ख़ालिक का बोल-बाला था।

प्रतियोगिता के दौरान 60000 पाकिस्तान फैन्स अब्दुल खालिक(abdul khalik) का जोश बढ़ा रहे थे, लेकिन मिल्खा की रफ्तार के आगे खालिक टिक नहीं पाए और मिल्खा से हार गए।

मिल्खा की जीत के बाद पाकिस्तान के राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अयूब खान(President Field Marshal Ayub Khan) ने उन्हें "फ़्लाइंग सिख(FLYING SIKH)" का नाम दिया। मिल्खा भारत के प्रसिद्ध और सबसे अच्छे एथलीट हैं।

जीवन परिचय

20 नवंबर, 1929 को गोविंदपुरा(Govindpura), पंजाब(Punjab) जो अब पाकिस्तान में है, मिल्खा सिंह(Milkha Singh) का जन्म हुआ था। मिल्खा सिंह(Milkha Singh) एक सिख जाट परिवार के थे जो खेती किया करते थे।

उनके माता-पिता की 15 संतानें थी। भारत के विभाजन के बाद की अफ़रातफ़री में मिल्खा सिंह ने अपने माता-पिता को खो दिया।

और बटवारे के बाद शरणार्थी बन के ट्रेन में पाकिस्तान से भारत आ गए। ऐसे भयानक बचपन के बाद उन्होंने अपने जीवन में कुछ कर गुज़रने की ठानी। मिल्खा सेना में भर्ती होना चाहते थे और आखिर कार साल 1952 में वह सेना की इलेक्ट्रिकल मैकेनिकल इंजीनियरिंग शाखा (Electrical Mechanical Engineering Branch) में शामिल हो गए।

एक बार सशस्त्र बल के उनके कोच हवलदार गुरुदेव सिंह ने उन्हें रेस के लिए प्रेरित किया और तब से वह खूब मेहनत के साथ प्रैक्टिस करने लगे। 1956 में पटियाला(Patiala) में हुए राष्ट्रीय खेलों के समय से मिल्खा सुर्खियों में आए।

एक होनहार एथलीट का ख़िताब जितने के बाद उन्होंने 200मी. और 400मी. की दौड में सफलता हासिल की जिसके बाद वह देश के जाने-माने खिलाडी बन गए। बहुत समय तक वह 400मी. की रेस के विश्व भर में सफल धावक रहे।

कार्डिफ़ के वेल्स, संयुक्त साम्राज्य में 1958 के कॉमनवैल्थ खेलों में स्वर्ण जीतने के बाद सिख होने की वजह से लंबे बालों के साथ पदक लेने पर पूरा खेल विश्व उन्हें जानने लगा।

मिल्खा ने देश के बटवारे के बाद दिल्ली(Delhi) के शरणार्थी शिविरों में अपने काष्ठ भरे दिनों को याद करते हुए कहा था, "जब पेट खली हो तब देश के बारे में कोई कैसे सोच सकता है? जब मुझे रोटी मिली तब मैंने देश के बारे में सोचना शुरू किया।" उन्होंने अपने माता-पिता को याद करते हुए कहा, "जब आपके माता-पिता को आपकी आँखों के सामने मार दिया जाये तो क्या आप भूल सकते हैं? कभी नहीं!" चार-बार के एशियाई खेलों के स्वर्ण पदक विजेता मिल्खा ने 1958 राष्ट्रमंडल खेलों(commonwealth games) में भी स्वर्ण ही हासिल किया।

उनका सबसे बेहतरीन प्रदर्शन 1960 के रोम ओलंपिक(rome olympics) में था जिसमें 400मी. के फाइनल्स(finals) में वह चौथे स्थान पर रहे थे। उन्होंने 1956 और 1964 ओलंपिक में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया। और उन्हें 1959 में पद्म श्री से नवाज़ा गया था।

मिल्खा ने बाद में खेल से सन्यास ले लिया और भारत सरकार के साथ मिल कर एथलेटिक्स से लोगों को जुड़ने के लिए प्रोत्साहित करने लगे। मिल्खा चंडीगढ़ में रहते थे। मशहूर फिल्म निर्माता, निर्देशक और लेखक "राकेश ओमप्रकाश मेहरा(Rakeysh Omprakash Mehra)" ने वर्ष 2013 में मिल्खा पर "भाग मिल्खा भाग(Bhaag Milkha Bhaag)" नामक फिल्म बनाई।

यह फिल्म पुरे देश में बड़ी चर्चा में रही। 30 नवंबर, 2014 में हैदराबाद(Hyderabad) में हुए 10 किलोमीटर के जियो मैराथन-2014 को मिल्खा ने झंडा दिखाकर रवाना किया।

18 जून, 2021 को चंडीगढ़(Chandigarh) के पी.जी.आई.एम.ई.आर अस्पताल (P.G.I.M.E.R Hospital) में मिल्खा सिंह ने अंतिम सांस ली। उनका और उनकी पत्नी का देहांत कोरोना वायरस से ग्रस्त होने के कारन हुआ।

1958 के एशियाई खेलों में उन्होंने 200मी. और 400मी. की दौड में स्वर्ण पदक जीते तो उस ही साल हुए राष्ट्रमंडल(commonwealth) खेलों में भी मिल्खा ने स्वर्ण पदक ही हासिल किया।

1959 में उन्हें पद्म श्री से सम्मानित किया और 1962 के एशियाई खेलों की 400मी. रेस और 400मी. रिले रेस में उन्होंने प्रथम स्थान जीता।

तो कलकत्ता में हुए राष्ट्रीय खेलों में भी मिल्खा को पहला स्थान प्राप्त हुआ। भारतीय सेना से रेटायअर्मेंट लेने के बाद 2003 में मिल्खा ने एक धर्मादा न्यास (चैरिटेबल ट्रस्ट(charitable trust)) खोला जिसके द्वारा वह उन खिलाडियों की सहायता करना चाहते थे जिनमें काबिलीयत तो है पर संसाधन और मार्गदर्शन की कमी के कारन वह पीछे रह जा रहे हैं। उन्होंने अपनी सारी संपत्ति दान कर दी क्योंकि उनका मन्ना था की उनकी ट्रॉफी और इनाम देश की संपत्ति है।

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