भारत के स्वतंत्रता संग्राम में वह हमेशा आगे रहीं और गाँधी जी के साथ नज़र आई "भारत कोकिला" 
प्रेरणा

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में वह हमेशा आगे रहीं और गाँधी जी के साथ नज़र आई "भारत कोकिला"

Pramod

स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाली "भारत कोकिला(Nightingale of India)" सरोजिनी नायडू(Sarojini Naidu) भारत की प्रसिद्ध कवित्री और भारत देश के सर्वोत्तम राष्ट्रीय नेताओं में से एक थीं। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में वह हमेशा आगे रहीं और गाँधी जी के साथ नज़र आई। उत्तर प्रदेश(Uttar Pradesh) लंबा-चौड़ा और जनसंख्या में बड़ा राज्य है जिसका राज्यपाल सरोजिनी नायडू(Sarojini Naidu) को चुना गया।

इस पद की ज़िम्मेदारी लेते समय उन्होंने कहा था कि मैं अपने को "कैद कर दिए गए जंगल के पक्षी" की तरह महसूस कर रहीं हूँ। जवाहरलाल नेहरू(Jawaharlal Nehru) के सम्मान की वजह से वह उनका फैसला टाल नहीं पाई और इस पद को उन्होंने स्वीकार कर लिया।

कहा जाता है जब वह अपने मीठे स्वर में कविता पढ़तीं तो आते-जाते लोग उन्हें ठहर कर सुनने लगते। उनके मीठे स्वर की वजह से ही उन्हें "भारत कोकिला(Nightingale of India)" का ख़िताब मिला था।

जीवन परिचय

हैदराबाद(Hyderabad) में 13 फरवरी, 1879 को उनका जन्म हुआ। पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय(Aghornath Chattopadhyay) एक नामी व्यक्ति थे और माँ एक कवित्री थीं जो बांग्ला में कविता लिखतीं थीं।

सरोजिनी(Sarojini) बचपन से ही बहुत तेज़ और बुद्धिमान थी जब वह 12 साल की थीं तब उन्होंने 12वीं की परीक्षा अच्छे नम्बरों से पास की और 13 वर्ष की उम्र में "लेडी ऑफ़ दी लेक(The Lady of the Lake)" नाम की कविता की रचना की।

हैदराबाद(Hyderabad) के निज़ाम ने उन्हें सहायता लेकर इंग्लैंड(England) भेजा। पहले लंदन(London) के किंग्स कॉलेज(King's College) और फिर कैम्ब्रिज(Cambridge) के गिरटन कॉलेज(Girton College) में उन्होंने दाखिला ले लिया।

नायडू(Naidu) एक गुणवान छात्रा थीं उन्हें अंग्रेजी, हिंदी, उर्दू, तमिल, बांग्ला, और फ़ारसी भाषा का अच्छा ज्ञान था। नायडू(Naidu) जब 19 साल की हुई तब उनकी शादी 1898 में डॉ. गोविन्द राजालु नायडू(DrGovinda Rajulu Naidu) से करवा दी गई।

गीत काव्य की शैली से उन्होंने साहित्य की दुनिया में कदम रखा और 1905, 1912 और 1917 में उनकी रचनाएँ प्रकाशित हुई। गोखले(Gokhale) ने 1905 में कोलकाता(Kolkata) की बैठक में एक भाषण दिया जो नायडू(Naidu) के सक्रिय राजनीति में उतरने में बहुत बड़ी भूमिका निभाता है।

उन्होंने भारतीय समाज में महिलाओं के साथ हो रहे अत्याचार के खिलाफ आवाज़ भी उठाई और लोगों को जागरूक भी किया। नायडू(Naidu) ने आज़ादी के लिए कई आंदोलनों का सहयोग भी किया और तो और उन्होंने बहुत समय तक बतौर कांग्रेस पार्टी की प्रवक्ता काम भी किया।जलियांवाला बाग़ हत्याकांड(Jallianwala Bagh massacre) का विरोध करती नायडू(Naidu) ने 1908 में "केसर-ए-हिन्द(Kaiser-e-hind)" पुरस्कार वापस कर दिया।

राजनीतिक जीवन

1906 से 1949 तक के राजनैतिक जीवन में नायडू ने बड़े- बड़े काम किए। उन्होंने कई आंदोलन किए और बहुत से आंदोलन का नेतृत्व किया। भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेने की वजह से उन्हें आगा खान महल में सजा दी गई।

1903 से 1917 के बीच उनकी मुलाकात टैगोर, गाँधी, नेहरू और अन्य राज नेताओं से हुई। 1914 में गाँधी जी(Gandhi Ji) से मुलाकात ने उनपर अलग प्रभाव डाला, वह अफ्रीका (Africa) के आंदोलन में गाँधी की सहयोगी रही। वह गोपालकृष्ण गोखले(Gopal Krishna Gokhale) को अपना "राजनीतिक पिता" कहा करती थीं।

उनका स्वभाव इतना हास्यपूर्ण था कि गाँधी जी उन्हें सभा के "विदूषक(clown)" कहा करते थे। 1919 में हुए सविनय अवज्ञा आंदोलन(Civil Disobedience Movement) में गाँधी जी की विश्वसनीय सहायक बनने से पहले वह 1915 से 1918 तक लोगों के अंदर राजनैतिक भावनाओं को जानने-पहचानने के लिए भारत भ्रमण पर थीं। 1919 में होमरूल(home rule) के मुद्दे को लेकर वह इंग्लैंड(England) चली गई।

1922 में उन्होंने खादी पहनने की कसम खा ली और 1922 से 1926 तक उन्होंने दक्षिण अफ्रीका(Africa) में भारतीयों के समर्थन के लिए आंदोलन किया और फिर 1928 में गाँधी जी के प्रतिनिधि के रूप में अमेरिका चली गई।

1925 में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की कानपुर(Kanpur) बैठक की पहली भारतीय महिला अध्यक्ष बनीं। नायडू(Naidu) ने कानपुर में कांग्रेस बैठक के वक्त भाषण में कहा था "भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को जो उसकी परिधि में आते हों, एक आदेश देना चाहिए की केंद्रीय और प्रांतीय विधानसभाओं में वह अपनी सीटें खाली करें और कैलाश से कन्याकुमारी (Kanyakumari) तक, सिंध से ब्रह्मपुत्र तक एक गतिशील और अथक अभियान का श्री गणेश करें।"

नायडू(Naidu) ने भारतीय महिलाओं पर कहा था कि, "जब आपको अपना झंडा संभालने के लिए किसी की ज़रूरत हो और जब आप आस्था के अभाव से पीड़ित हों तब भारत की नारी आपका झंडा संभालने और आपकी शक्ति को थामने के लिए आपके साथ होगी और यदि आपको मरना पड़े तो याद रखिएगा की भारत के नारीत्व में चित्तौड़ की पद्मिनी की आस्था समाहित है।"

सिर्फ 13 साल की उम्र में उन्होंने 1300 पंक्तियों की "द लेडी ऑफ़ लेक(The Lady of the Lake)" कविता लिखी और फ़ारसी भाषा में एक नाटक "मेहर मुनीर(mehar munir)" लिखा। उनकी प्रकाशित किताबों में "द बर्ड ऑफ़ टाइम(The Bird of Time)", "द ब्रोकन विंग(The broken wing)", "नीलांबुज(Neelambuj)", "Neelambuj" शामिल है।

70 साल की उम्र में उनको दिल का दौर आया और 2 मई, 1949 को लखनऊ(Kanpur) के गवर्नमेंट हाउस(Government House) में उनका निधन हो गया।सरोजिनी अपने आखिरी वक्त में अपने कार्यकाल में काम कर रहीं थीं। 1961 में नायडू के निधन के करीब 12 साल बाद उनके बेटे ने उनकी कविता का संग्रह "द फेडर ऑफ़ द डॉन(The Fader of the Dawn)" को प्रकाशित किया।

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