Ashish Urmaliya | Pratinidhi Manthan
अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन ने हाल ही में सफलतापूर्वक अपने 20 वर्ष पूरे कर लिए हैं। इस स्पेस स्टेशन के जरिए अंतरिक्ष में इंसान की पकड़ बहुत ज्यादा मजबूत हो गई है। इसकी स्थापना पांच देशों के सहयोग से हुई है और यह इन देशों के बीच हुए एक समझौते के तहत संचालित होता है।
अगर आपसे पूछा जाए कि इंसान कहां पाए जाते हैं? किस गृह में पाए जाते हैं? तो संभवतः आपका जवाब यही होगा कि मानव प्रजाति पृथ्वी गृह पर पाई जाती है, उसके आला इंसान और कहीं नहीं रहते। अगर आपको थोड़ा बहुत एलियन वाला लॉजिक ठीक लगता है तो आप कह देंगे कि इस ब्रह्माण्ड में एलियन भी कहीं न कहीं मौजूद हो सकते हैं. लेकिन अगर आपसे कहा जाए कि एक दुनिया ऐसी भी है जहां पर पिछले 20 सालों से लोग रह रहे हैं, तो आपका रिएक्शन होगा?
हालांकि ज्यादा चौंकने वाली बात नहीं है, लेकिन हां एक दुनिया ऐसी भी है जहां लगातार पिछले 20 वर्षों से लोग रह रहे हैं और उस दुनिया का नाम है- अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (आइएसएस)। यहां अंतरिक्ष यात्रियों की आवाजाही लगातार बनी रहती है। साल 2000 में अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री बिल शेफर्ड के साथ रूसी अंतरिक्ष यात्री सेर्गेई क्रिकालेव और यूरी गिडजेंको ने ISS पर पहली बार कदम रखा था। इसके बाद से यह स्पेस स्टेशन पिछले 20 सालों में 19 देशों के 241 लोगों की मेजबानी कर चुका है। यह स्पेस स्टेशन दुनिया भर के अंतरिक्ष यात्रियों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।
आइए अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन को समझते हैं-
यह अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन एक तरह का अंतरिक्ष यान ही है जो आकार में काफी बड़ा है। अंतरिक्ष यात्रियों के लिए यह एक घर जैसा ही जहां सारी सुविधाएं मौजूद हैं। इसके साथ ही यहां बेहद उन्नत प्रयोगशाला भी मौजूद है। जिसमें अंतरिक्ष यात्री विभिन्न तरह के संबंधित शोधकार्य करते हैं। यह पृथ्वी से करीब 250 मील (402 किमी) की औसत ऊंचाई पर मौजूद है, इसी ऊंचाई पर रहते हुए यह पृथ्वी की परिक्रमा करता है। 17,500 मील (28,163 किमी) प्रति घंटे की रफ्तार से यह पृथ्वी की परिक्रमा करता है।
अंतरिक्ष में स्थापित कैसे किया गया?
स्पेस स्टेशन का पहला हिस्सा नियंत्रण मॉड्यूल के रूप में नवंबर 1998 को रूसी रॉकेट के जरिये लांच किया गया था। शुरुआती चरण के लिए यह विद्युत और भंडारण के साथ मार्गदर्शन भी प्रदान करता था। अगले दो सालों में इसके साथ कई हिस्सों को जोड़ा गया और 2 नवंबर 2000 को पहला चालक दल यहां पहुंचा। इसके उपरांत भी अलग-अलग समय पर इसके साथ कई हिस्से जोड़े गए। नासा और दुनिया में उसके अन्य सहयोगियों ने स्पेस स्टेशन का काम 2011 में पूरा किया। इसमें अमेरिका, रूस, जापान और यूरोप के प्रयोगशाला मॉड्यूल शामिल हैं। नासा के साथ चार अन्य देशों के वैज्ञानिकों ने मिलकर इसको जीवंत किया जिसमें लगभग 13 वर्षों की कठिन मेहनत लगी।
महत्ता क्या है?
अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से अंतरिक्ष में इंसान की उपस्थिति सुनिश्चित हो पाई है। स्पेस स्टेशन की प्रयोगशालाएं चालक दल के सदस्यों को अनुसंधान करने की अनुमति देती हैं, जो किसी और जगह संभव नहीं है। ये अनुसंधान पृथ्वी पर लोगों को कई तरह से लाभान्वित करते हैं। इस स्पेस स्टेशन के माध्यम से नासा का मुख्य उद्देश्य दूसरी दुनिया को खोजना है, जिसकी अटकले पुरातन काल से लगाई जा रही हैं।
पहली बार कौन और कैसे पहुंचे थे?
31 अक्टूबर 2000 को अमेरिका के अंतरिक्ष यात्री बिल शेफर्ड के साथ रूसी अंतरिक्ष यात्री सेर्गेई क्रिकालेव और यूरी गिडजेंको ने कजाखस्तान से स्पेस स्टेशन की उड़ान भरी थी। दो दिनों के बाद उनके लिए स्पेस स्टेशन के दरवाजे खुले थे। उस वक्त यह तीन कमरों का हुआ करता था, जो काफी तंग, नम और आकार में भी काफी छोटा था। हालांकि बीते वर्षों के इसमें भारी बदलाव आया है, अब यह पूरी तरह से समृद्ध स्पेस स्टेशन के रूप में तब्दील हो चुका है।
अब इसकी खासियतों पर नज़र डाल लेते हैं…
आपने पढ़ा होगा इसमें जिम भी है। आपने सोचा भी होगा भई जिम की इतनी बड़ी आवश्यकता यहां क्यों आन पड़ी और यहां जिम करने के लिए वैज्ञानिकों के पास वक्त ही कहां रहता होगा। तो आपको बता दें, इसमें जिम होना इसलिए आवश्यक है ताकि अंतरिक्ष यात्री स्पेस स्टेशन में रोजानाा 2 घंटे वर्कआउट कर सकें। क्योंकि यहां बहुत कम गुरुत्वाकर्षण के कारण मांसपेशियों और हड्डी के दृव्यमान को नुकसान होने की भरी संभावना बानी रहती है इसलिए एक्सरसाइज बेहद जरूरी है।