AshishUrmaliya || Pratinidhi Manthan
सामान्यखेती तो किसानों को बचपन से ही आती है, लेकिन जैविक खेती कैसे की जाती है? इसमें भविष्यकी क्या संभावनाएं हैं? इसके लिए पैसा-दाम का जुगाड़ कहां से होगा? उत्पाद के लिए बाजारकहां से मिलेगा? इन सभी प्रश्नों का जवाब किसानों को नहीं पता इसलिए जवाब देने के लिएकेंद्रीय कौशल विकास एवं उद्यमिता विकास मंत्रालय सामने आया है।
लगातारबिगड़ती आवोहवा के चलते समय की मांग है कि 'जैविक खेती' को एक उपयोगी जरिया बनाया जाये।और ख़ास बात यह भी है कि जैविक उत्पादों की मांग न सिर्फ विदेशों में है बल्कि भारतमें भी इसका बाजार तेजी से विकसित हो रहा है। इन्हीं बातों को मद्देनज़र रखते हुए राष्ट्रीयउद्यमिता एवं लघु व्यवसाय विकास संस्थान (निसबड) द्वारा इसके लिए एक खास पाठ्यक्रमकी शुरुआत की गई है।
जैविकखेती को बढ़ावा देने के लिए केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने देश के कई हिस्सों में इसकी शुरुआतकर दी है। जैविक खेती के लिए देश के हर राज्य के कुछ जिलों का चयन किया गया है, वहींपूरे सिक्किम राज्य को जैविक खेती वाला राज्य घोषित कर दिया गया है।
समस्या यह है कि ज्यादातर किसानोंको इसकी जानकारी ही नहीं।
देशके अधिकतर किसान जैविक खेती के बारे में नहीं जानते, इसलिए किसानों को खासकर नई पीढ़ीके किसानों को इसकी जानकारी देने के मकसद से इस पाठ्यक्रम की शुरुआत की गई है। जैसाकि हम सभी जानते हैं भारत एक कृषि प्रधान देश है और कृषि के विकास में ही देश का विकासहै लेकिन आज की युवा पीढ़ी कहीं न कहीं कृषि से दूर भाग रही है, इसीलिए सरकार के पूरेप्रयास युवाओं को कृषि की तरफ रिझाने की दिशा में ही अग्रसर हैं। सरकार कृषि क्षेत्रमें विकसित नई तकनीक के आगमान के साथ ही किसानों के स्वस्थ्य और संपन्नता लिए अधिकसे अधिक किसानों को जैविक खेती के बारे में जागरूक व प्रशिक्षित करने का प्रयास कररही है।
जैविक खेती होती क्या है?
यहखेती की एक ऐसी पद्धति है जिसमें पर्यावरण को स्वच्छ रखते हुए, भूमि, जल एवं वायु कोबिना प्रदूषित किये यानी प्राकतिक संतुलन को कायम रखते हुए दीर्घकालीन व स्थिर उत्पादनप्राप्त किया जाता है। खेती होती खेतों में ही है लेकिन खेती के लिए रसायनों का उपयोगबहुत ही कम व आवश्यकता अनुसार किया जाता है। रासायनिक कृषि की अपेक्षा यह ज्यादा सस्ती,स्वाबलंबी व स्थाई है। इस पद्धतति में मिट्टी को एक जीवित माध्यम माना जाता है खेतीके दौरान भूमि का आहार जीवांश होते हैं और ये जीवांश गोबर, पौधे व जीवों के अवशेष आदिहोते हैं। जीवांश खादों के प्रयोग से पौधों को समस्त पोषक तत्व प्राप्त हो जाते हैं,साथ ही इनके प्रयोग से उगाई गई फसलों पर बीमारियों व कीटों का प्रकोप बहुत कम हो जाताहै। इससे किसानों को अपनी फसलों पर हानिकारण रसायन, कीटनाशकों के छिड़काव की आवश्यकताभी नहीं पड़ती। फलस्वरूप फसलों से प्राप्त खाद्यान, फल व सब्जियां हानिकारक रसायनोंसे पूर्णतः मुक्त होती हैं। साथ ही ये खाद्य पदार्थ अधिक स्वादिष्ट, पोषक-तत्वों सेभरपूर होते हैं।
आपकोबता दें, जैविक खेती के लिए भूमि में जीवांश जैसे गोबर की खाद (नैडप विधि), वर्मी कम्पोस्ट,जैव उर्वरक एवं हरी खाद का प्रयोग किया जाना आवश्यक है। केंद्रीय कौशल विकास एवं उद्यमिताविकास मंत्रालय आपको जैविक खेती के सारे गुर सिखाएगा।
खेती तो हो गई अब उत्पाद को बेचनाकैसे है?
केंद्रीयकौशल विकास एवं उद्यमिता विकास मंत्रालय की निदेशक पूनम सिन्हा के अनुसार, जैविक खेतीके पाठ्यक्रम में मूल रूप से जैविक खेती की तकनीक तो सिखाई ही जाती है, साथ ही किसानोंको उद्यमी बनाने पर भी जोर दिया जाता है। इसमें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के परिषद्के विशेषज्ञों का सहयोग भी मिलता है। किसानों को तकनीकी सहायता कहां से मिलेगी, कामशुरू करने के लिए वित्त पोषण कहां से होगा, जैविक खेती के उत्पाद का बाजार कहां हैऔर ज्यादा से ज्यादा लाभ पाने के लिए उसे कहां बेचना चाहिए जैसी सभी जानकारियां दीजाती हैं।
नोएडा में दिया जा रहा प्रशिक्षण-
THENATIONAL INSTITUTE FOR ENTREPRENEURSHIP AND SMALL BUSINESS DEVELOPMENT(NIESBUD) ने इस पाठ्यक्रम के लिए दो दिन के प्रशिक्षण की शुरुआत कर दी है। यह प्रशिक्षणइस संस्था के नोएडा स्थित परिसर में दिया जाता है। आपको बता दें, इसके प्रशिक्षण केलिए 5000 रुपए की शुल्क भी निर्धारित की गई है, जिसमें 18 फीसदी की दर से जीएसटी भीलगता है। इस शुल्क में प्रशिक्षण के साथ अध्ययन सामग्री, भोजन चाय, जलपान आदि की सुविधाएंशामिल हैं। पाठ्यक्रम पूरा करने वाले किसानों को एक प्रमाण-पत्र भी दिया जाता है।
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